"माफ़ करना आसान है?"
©® आरती पाटील- घाडीगावकर
गांव का नाम था 'राम नगर', जहां जीवन की गति धीमी थी, पर दिलों की गहराई में तूफान छिपे थे। इस गांव में दो सबसे अच्छे दोस्त थे – अर्जुन और समीर। बचपन साथ गुज़रा, खेतों में खेलना, आम के पेड़ों पर चढ़ना, नहर में नहाना – सबकुछ साथ। दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी।
दोनो में बडा प्यार और विश्वास था। एक दुसरे के साथ रहते दोनो परिवारो में भी एक बंधन हो गया था । इसीलिये शायद दोनो दोस्त बिगडे नहीं । बुरी अदतोसें हमेशा दूर रहे । दोनो घर जैसे अपने ही थे । किसी के घर में कोई काम हो या कोई दिक्कत हो, दोनो एक दुसरे के लिये तयार होते थे।
समय बीता, दोनों बड़े हुए। अर्जुन ने किसानी को अपनाया, जबकि समीर शहर जाकर नौकरी करने लगा। सालों तक उनका संपर्क बना रहा। एक दिन अर्जुन सुबह उठा तो उसके पिता का शरीर थंडा पडा था । वह पिता को लेकर हस्पताल पोहचा तो डॉक्टरो ने उन्हे मृत घोषित किया ।
अर्जुन अपनी पिता की मौत से सदमे में चला गया । वह यह मान ही नहीं पा रहा था की, उसके पिता अब नहीं रहे । पर पिता के बाद घर परिवार को भी तो संभालना था। उस वक्त अर्जुन की समीर की बहोत याद आयी । और फिर आश्चर्य भी हुआ की " समीर को मेरे पिता के मृत्यू की खबर अब तक मिली नहीं होगी क्या ? समीर के पिता तो आये थे अंतिम संस्कार में । फिर भी समीर को पता नहीं होगा क्या ? उसने एक फोन तक नहीं किया ? या फिर अब उसे अपने गाव- खेडे में राहने वाले दोस्त की शरम आती हैं ? या फिर उसे सच में पता नहीं ? " यह सोचते हुये अर्जुन ने फोन उठाया और समीर को कॉल करणे लगा । बडी देर तक घंटी बजती रही लेकिन किसीने फोन नहीं उठाया । अर्जुन ने दिन में कई बार फोन लगाया लेकिन किसीने फोन नहीं उठाया ।
अर्जुन अब और फोन करके अपने आप को और दुखी नहीं करना चाहता था, इसीलिये उसने फोन करना बंद कर दिया
पर दूरी धीरे-धीरे रिश्ते में खामोशी की दीवारें खड़ी करने लगी।
पर दूरी धीरे-धीरे रिश्ते में खामोशी की दीवारें खड़ी करने लगी।
एक दिन समीर गांव लौटा। शहर की दौड़-भाग से थक चुका था, अब कुछ स्थायी और सुकून की तलाश थी। गांव पहुंचते ही सबसे पहले अर्जुन से मिलने गया। पर अर्जुन का व्यवहार बदला हुआ था – ठंडा और रूखा।
समीर के कहा, " चल, अर्जुन जाके उसी पुरानी नुक्कड की दुकान पर जाके समोसे खाते हैं, जहाँ पहले खाते थे । चाय भी पियेंगे, और खूब गप्पे भी मरेंगे ।" यह कहते हुये समीर ने अर्जुन का हात पकड कर खिचा तो अर्जुन के घुसे में समीर का हात झटक दिया । समीर हैरान रह गया। उसने पूछा, "क्या हुआ अर्जुन? क्या मैंने कुछ गलत किया?"
अर्जुन की आंखों में दर्द झलकने लगा। वह बोला, "तुझे नहीं लगता कि तूने गांव और मुझे दोनों को छोड़ दिया था? जिस दिन मेरे पिता की मौत हुई, मैं तुझसे एक बार बात करना चाहता था, बस एक बार। पर तूने फोन तक नहीं उठाया। मुझे तेरा सहारा चाहिए था, तू मेरा भाई था समीर, और तू नहीं आया।"
समीर के चेहरे पर अपराधबोध उभर आया। उसने सिर झुका लिया, "माफ़ कर दो अर्जुन। मैं उस वक्त अस्पताल में भर्ती था। हार्ट अटैक आया था, अकेला था, किसी को बताने की ताकत नहीं थी। मैं भी बिखरा हुआ था। चाचा जी की जाके की बात मुझे पता चली, लेकिन में आने में असमर्थ था। उस वक्त तू खुद दुख में था, में तुझे और परेशान नहीं करना चाहता था इसीलिये मैने मेरे घरवालो को भी यह बात तुझे बताने से मना किया था । मुझे माफ करना अर्जुन जिस वक्त तुझे मेरी जरुरत थी में तेरे साथ नहीं था " समीर ग्लानी भाव से कह रहा था ।
अर्जुन चौंका। उसने कभी नहीं सोचा था कि समीर के पीछे भी कोई कहानी हो सकती है।
"तूने कभी बताया नहीं," अर्जुन बोला।
"कभी हिम्मत नहीं हुई," समीर ने कहा, "डरता था कि तू माफ़ नहीं करेगा।"
कुछ पलों की खामोशी के बाद अर्जुन की आंखें भर आईं। उसने समीर को गले लगा लिया।
"शायद माफ करना इतना भी मुश्किल नहीं था, अगर हम पहले ही बात कर लेते," अर्जुन बोला।
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कहानी यहीं खत्म नहीं होती। गांव में जब लोगों को अर्जुन और समीर की सुलह का पता चला, तो यह बात चर्चा का विषय बन गई। कई लोगों ने कहा, "देखो, सच्चे रिश्ते माफ़ी से ही बचते हैं।" लेकिन कुछ लोग बोले, "माफ़ करना तो आसान है, पर भूल पाना नहीं।"
यह बात सुनकर समीर ने अर्जुन से पूछा, "क्या तू मुझे सच में माफ़ कर पाया?"
अर्जुन मुस्कराया, "माफ़ करना शायद इतना आसान नहीं था, लेकिन जरूरी था। जब मैंने तेरी बात सुनी, तेरी तकलीफ़ जानी, तब समझ आया कि माफ़ी केवल सामने वाले के लिए नहीं होती, अपने दिल के बोझ को हल्का करने के लिए भी होती है।"
समीर ने कहा, "तो क्या माफ़ करना आसान है?"
अर्जुन ने जवाब दिया, "नहीं... पर मुश्किल भी नहीं, अगर इंसान अपने अहंकार से ऊपर उठे।"
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समय बीतता गया। अर्जुन और समीर की दोस्ती फिर से वैसी ही हो गई, जैसी बचपन में थी। अब जब भी गांव में किसी के बीच मनमुटाव होता, लोग अर्जुन और समीर की मिसाल देकर समझाते – "बात करो, माफ़ करो, क्योंकि इंसान से गलतियां होती हैं, पर माफ़ी देना एक गुण है – जो इंसान को बड़ा बनाता है।"
निष्कर्ष:
कहानी एक साधारण से सवाल पर गहरी दृष्टि देती है – "क्या माफ़ करना आसान है?" शायद नहीं। माफ़ करना भावनाओं, दर्द, स्वाभिमान और कभी-कभी टूटी उम्मीदों से जूझना होता है। लेकिन जब इंसान सामने वाले की बात सुनता है, सच्चाई जानता है, तब दिल थोड़ा-थोड़ा नरम होने लगता है।
माफ़ करना आसान नहीं होता, लेकिन यही वह रास्ता है जो हमें घावों से मुक्ति देता है। यह सिखाता है कि हर इंसान के पास अपनी कहानी होती है, और जब हम उस कहानी को सुनते हैं, तो हमारे अंदर दया, समझ और प्रेम की भावना जागती है।
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