जिंदगी का कर्ज!

A short Hindi poem about Life.

कर्ज जिंदगी का यूं निभाता चला गया,कि हर ग़म को भी गले से लगाता चला गया।

हर ज़ख्म को भी अपनाया इस तरहां, के दर्द मुझमें और मैं दर्द में समाता चला गया।

कभी हालात पर अपने रोना भी आया तों, आंसुओं को जमाने से छुपाता चला गया।

हाथों की लकीरों पर भी अब यकिन ना रहा मुझे,किस्मत के लिखें हर फैसले को अपनाता चला गया।

कर्ज जिंदगी का यूं निभाता चला गया,कि हर ग़म को भी गले से लगाता चला गया।