आवारे थें ,प्यारे थें...
सुहाने थें, दिवाने थें
बैचेन थें, अपने थें...
पर.....,
गिरे हुए पन्नों कीं तरह...
न जाने कब सुख गए...?
आपके इंतज़ार के लम्हे...!!
कु.हर्षदा नंदकुमार पिंपळे
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