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ऊसका आकाश भाग 1

एक कहानी

उसका आकाश


"प्रीति, तू कब तक इस तरह जीती रहेगी?"
प्रीति ने कोई जवाब नहीं दिया। नयना ने वही सवाल फिर से दोहराया।
"पता नहीं।"
"ये कोई जवाब नहीं है।"
"सच में मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"
"कुछ तो तय कर। आखिर कब तक ऐसे ही रहना है…?"
"मुझे कुछ भी समझ नहीं आता।"
"थोड़ा सोच, तभी समझ आएगा। कितने दिन और संदीप का इंतज़ार करती रहेगी?"
प्रीति ने इस पर भी कुछ नहीं कहा।
नयना का गुस्से भरा चेहरा देखकर भी वह चुप रही।
"प्रीति, थोड़ा लॉजिक तो लगाओ। सोचो संदीप ने ऐसा व्यवहार क्यों किया, इसका कारण ढूंढ।"
"मुझे अब भी लगता है कि वो किसी मुसीबत में है।"
"तुझे कैसे पता?"
"वो ऐसे बिना कुछ कहे मुझसे दूर नहीं रह सकता।"
"ये तेरा ज़्यादा आत्मविश्वास है। अगर वो सच में किसी संकट में होता तो अब तक कोई खबर तो आती। ये भी नहीं पता कि वो है कहाँ।"
"शायद वो हमें कुछ बता नहीं पा रहा होगा।"
"संदीप की भाभी से बात की तूने?"
"हाँ। उन्हें भी कुछ नहीं पता। वो पुणे भी नहीं आया अब तक।"
"प्रीति, ज़रूर कुछ गड़बड़ है।"
"मैं भी वही कह रही हूँ।"
"लेकिन तेरे कहने जैसी गड़बड़ नहीं। इतने दिन से संदीप घर नहीं आया और उसके परिवार वालों को चिंता नहीं हो रही? उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं की?"
"नहीं।" प्रीति ने कहा।
"नहीं? ये कैसे हो सकता है, प्रीति? संदीप के घरवालों ने पुलिस में रिपोर्ट तक नहीं की, ये तुझे अजीब नहीं लगता? तुम दोनों की शादी होने वाली थी।"
"हाँ, होने वाली है।"
"अगर वो वापस आया तो करेगी ना उससे शादी?"
"नयना, तू इतना ताना क्यों मार रही है?"
"क्योंकि तू पागलों जैसी हरकतें कर रही है, इसलिए मुझे ऐसे बोलना पड़ रहा है।"
"नयना, तुझे पता है ना हम दोनों एक-दूसरे से कितना प्यार करते हैं।"
"मुझे पता होने से क्या फर्क पड़ता है? क्या वो प्यार शादी के बंधन में बदलेगा? यही असली सवाल है।"
"बदलेगा न।"
"कब?"
"जब संदीप वापस आएगा… नयना, मेरा दिमाग खराब मत कर।"
"क्या तुम्हारी माँ को संदीप के बारे में सब पता है?"
"हाँ, माँ को सब पता है।"
"अब जब संदीप लापता है, ये बात भी उन्हें मालूम है?"
"नहीं।"
"कब बताने वाली है तू अपनी माँ को?"
"पता नहीं।"
"क्या बकवास कर रही है तू? संदीप इतने दिनों से गायब है और तूने अभी तक माँ को नहीं बताया? प्रीति, तुझे हो क्या गया है?"
"नयना, इस समय तू मेरे साथ होना चाहिए, लेकिन तू ही मुझे उल्टा बोल रही है।"
"क्यों न बोलूँ? अगर संदीप पर सच में कोई मुसीबत आई होती, तो मैं तेरे साथ खड़ी रहती। लेकिन यहाँ तो संदीप का कोई अता-पता नहीं, उसके घरवालों को कोई फिक्र नहीं, उसका फोन बंद है — ये सब तुझे शक की बात नहीं लगती?"
"नहीं, क्योंकि मुझे संदीप पर भरोसा है।"
प्रीति के इस जवाब पर नयना ने माथा पीट लिया।
"क्या करूँ तेरा, प्रीति? ज़रा समझदारी से सोच। संदीप कहाँ है, इसका पता लगाना होगा। वो तुझसे शादी करना चाहता है या नहीं, ये देखना होगा। और उसके घरवाले इतने शांत क्यों हैं, इसका भी कारण पता करना पड़ेगा।"
तभी वहाँ आई प्रीति की माँ ने नयना की ये बात सुन ली।
"संदीप कहाँ गया है?"
प्रीति और नयना दोनों चौंक गईं। प्रीति ने खुद को सँभालते हुए कहा,
"अम्मा, वो गाँव गया है।" उसने मुश्किल से जवाब दिया।
"बस इतनी सी बात? तो फिर तुम दोनों के चेहरों पर इतना तनाव क्यों दिख रहा है?"
दोनों कुछ बोल नहीं पाईं। माँ जवाब का इंतज़ार कर रही थीं।

क्रमशः - 'पुनर्विचार' भाग 1
क्या प्रीति अपनी माँ को सच बताएगी? जानिए अगले भाग में…
© मीनाक्षी वैद्य

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