तुम मेरी चाहत हो(एक खट्टी-मीठी प्यार की कहानी)-५

ये कहानी राजस्थान के राजपूत खानदान के राजकुँवर अखिल और पूना की शुभ्रा के प्यार कि प्रेमगाथा है।


तुम मेरी चाहत हो - ५
               (एक खट्टी-मीठी , प्यार की कहानी)

       एक दिन से लेकर दूसरे दिन की शाम तक यानी रात के ८ बजे लगभग ट्रैन से चौबीसों घटें का सफर शुभ्रा ने पहली बार ट्रेन से किया था। वोह तो बस इन चौबीसों घंटे में, किसी मुरझायी सी कली हो गयी थी। जिसेने अपने जीने की उम्मीद ही पूरी तरह से खो दी थी।

   जब ट्रेन महाराष्ट्र राज्य से गुजरते हुये आगे-आगे बढ़ती चली जा रही थी वैसे- वैसे शुभ्रा को अपने हँसते-खेलते परिवार की यादे बार बार सताने लग गयी। वोह बस पूरे सफर में रोते ही चली जा रही थी। उसके आजू-बाजू बैठे हुये २ बुजुर्ग महिलाओं ने शुभ्रा को रोते हुये देखकर उसके साथ पूरे सफर में बात की। शुभ्रा को अब उन दोनों बुजुर्ग महिलाओं की बातों से कुछ हद तक तस्सली मिल गयी की जिंदगी के सफर में कई बार अनजाने भी छोटीसी मुलाकात में हमारे साथी बन जाते है। बल्कि एक अपनेपन का रिश्ता बनाते है।

  उन दोनों महिलाओं ने शुभ्रा के साथ पूरे सफर में कुछ पल के लिये ही सही झूठी -मुठी तो सही उसके चहरेपर हँसी दे दी। जब चौबीसों घंटे का सफर पूरा हुआ, तो उन महिलाओं ने बड़े ही प्यार से शुभ्रा को कहा जाना है यह पूछ लिया। जयपुर स्टेशन इतना ही शुभ्रा बस पूरे सफर में बता पायी।

   जब जयपुर स्टेशन आ गया तो रात के लगभग ८ बजे थे। अब इतनी रात अकेली लड़की को कहा छोड़ दे ये सोचकर उन महिलाओं ने शुभ्रा को अपने साथ अपने घर चलने की जिद की, मगर शुभ्रा ने उन्हें बिना दुखाये ही मना कर दिया। तो बस उनसे इतना ही पूछ लिया की "रानी अनुपमा देवी राठौड़ का महल कहा है?"

   शुभ्रा की इस सवाल से मानो वोह दोनो भी औरते और उन्हें लेने के लिये आया उनका एक भतीजा वोह तीनो भी अब घबरा गये। चौककर उन्होंने सबसे पहले शुभ्रा को ऊपर से नीचे तक देख लिया और तीनों भी चुप होकर अपना फर्ज समझकर उससे बिना कुछ पूछे ही उसे जयपुर के राजाजी भूपेंद्र सिंह राठौड़ के राजमहल के द्वार पर छोड़कर वोह अब वहाँसे अपने घर की ओर चले गये।

    रात के अब लगभग दस बज चुके थे। शुभ्रा को भी अब बडीही जोरो की भूक लगी थी। राजमहल की निगरानी कर रहे पहरेदारों को शुभ्रा ने राजमाता अनुपमा देवी से मिलने की बात की। शुभ्रा की बात सुनकर और साधारण सी साड़ी पहनी औरत जिसने अपने चेहरे को अपने पल्लू से ढक दिया है उससे मुँह से जयपुर के राजमहल की राजमाता अनुपमा देवी का नाम सुनकर, उन पहरेदारों को और भी अजीबसा लग गया।

   अब वहाँके पहरेदारों ने शुभ्रा की बात को हल्के में ले लिया। अब दिन में हजारों लोगों की भीड़ रहती है राजाजी और राजमाता के दर्शन के लिये इसलिए उन्होंने अब शुभ्रा को सुबह आने के लिये कह दिया।

   अब तो शुभ्रा को भूखे पेट की वजहसे चक्कर ही आने शुरू हो गये और बेहोश होकर शुभ्रा नीचे गिर पड़ी। अब वहाँ पर पहरा देनेवाले पहरेदार भी घबरा गये की रात के समय एक औरत का ऐसे राजमहल के गेट के सामने गिर जाना।

    तभी वहाँसे अपने दिनभर के काम को खत्म करके अपने घर की और राजमहल में काम करनेवाली एक नौकरानी बिंदिया वहाँपर आ गयी। उसने जब चक्कर खाकर गिरी हुई शुभ्रा को देख लिया तो उसने वहाँपर खड़े सारे पहरेदारो से शक की नजर से देख लिया। शुभ्राके चहरेपर कुछ पानी की बूंदे छिड़ककर, शुभ्रा को पानी पिलाकर उसे वहाँपर गेस्ट हाउस की तरफ, वहीपर खड़े २ पहरेदारों की मद्त से बिंदिया ले गयी। वही राजमहल के गार्डन के बाजू कुछ नौकरों को रहने की सुविधा राजाजी ने दी हुई थी।

  अब उसमे से एक गेस्ट हाउस में शुभ्रा और बिंदिया थी। बिंदिया ने वहाँ के नौकरों से कहकर एक खाने की थाली शुभ्रा के लिये मंगवाई थी। थोड़ी देर बाद शुभ्रा को होश आया गया। शुभ्रा को होश आने के बाद उसने जब अपने आप को किसी अनजान जगह पर  देख कर वोह अब फिरसे घबरा गयीं। तभी उसके सामने बीस साल की घागरा, कुर्ती पहने हुये, सावली सी,हसमुख बिंदिया आ गयी।

बिंदिया - (खुद ही बड़बड़ाने लग जाती है).आप तो चक्कर खाकर गिर ही गयी। चलिये जल्दी से खाना लिजिये वरना आप महारानी जी से नही मिल पायेगी।

    (अभीभी शुभ्रा तो बिंदिया की ही तरफ देख रही थी। तब बिंदिया ही फिरसे कहने लगे गयी अपने सर पर खुद ही अपने एक हाथ से हल्केसे मारकर, हँसते हुये) मैं भी ना इतनी सारी चटर-पटर करती रहती हूं की बस मुझे तो समझ भी नही आया की  मैंने अपना नाम तो आपको बताया ही नही है। मेरा नाम है बिंदिया औऱ आपका दिदी? (अब शुभ्रा चुप ही बैठकर सिर्फ बिंदिया को निहार रही थी। जो राजस्थानी लिबास में थी। गांव की छोकरी।
 
    अब फिरसे बिंदिया चुप होने की बजाय कहती है शुभ्रा से ) वैसे आपको तो बुरा नही ना लगा की मैने आपको दिदी कहा इसलिये?
(अब फिरसे अपनी गर्दन को हल्केसे "हॉ" में हिलाकर मानो शुभ्रा ने बिंदिया के उसके दिदी बुलाने पर कोई भी एतराज नही जताया। अब फिरसे बिंदिया ही बोलने लग गयी।) चलिये दिदी आपको भूक लगी होगी, जल्दी से खाना खा लीजिये।

शुभ्रा - (शुभ्रा ने बिंदिया की तरफ देखकर कहा) बिंदिया, तुम भी मेरे साथ खा लो?

बिंदिया - (छोटी बच्ची जैसी खिलखिलाकर हँसते हुये कहने लगे गयी) नही दिदी, आप खा लिजियेगा। राजमहल में राजाओं की परिवार के बाद हम सभी नौकरों के लिये भी पकवान रहते है। मैं तो वही सुबह से लेकर रात तक रहती हूं। मेरा रात का खाना भी खाकर हो गया है। आप खा लिजियेगा।

(शुभ्रा के दों- तीन बार मिन्नतों के बाद भी बिंदिया ने खाना खाने से मना कर दिया और अब शुभ्रा खाना खा रही थी तो थोड़ी दूरी पर बिंदिया बैठकर उसके साथ बाते कर रही थी। )

बिंदिया - दिदी, आज रात आप बस यहाँ पर काट लिजियेगा (तभी अचानक खाना खाते -खाते शुभ्रा के हाथ अब रुक ही गये तो ये देखकर बिंदिया ने फिरसे कहना शुरू कर दिया।) दिदी, आप परेशान मत होना। मैंने आप को यहाँ पर लाते वक्त,  राजमहल के गेट के चौकी दारो से कह दिया था की हमारे घर यानी के पास वाला जो मंगलपुर है ना वहाँपर यानी हमारी अम्मा, बापू , छोटा भाई टिकू को बता दे की मैं यहाँ आपके साथ रुकी हुई हूं। और अब तो कल रात ही इसी समय मे अपने गाँव को जाऊंगी।

   वैसे दिदी आपको इस राज महल में किससे मिलना है? आप सिर्फ बता दिजिये कल सुबह ही हम दोनों भी राजमहल में जाकर उनसे मिल लेंगे।

(इस वक्त शुभ्रा का खाना खाकर हो गया था। वोह अब मासुम सी बिंदिया की तरफ देखने लगे गयी। तो बिंदिया ने कहा) कोई बात नही दिदी कल आप सुबह मेरे साथ चलिये। वैसे दिदी आपके घर मे कौन कौन रहता है?

(बिंदिया की इस सवाल से शुभ्रा ने अब फिरसे "ना" में गर्दन हिलायी और अपने पूरी "देसाई परिवार" को याद करके, वोह अब फूटफूटकर रोने लग गयी। अब तो बिंदिया को भी बुरा लगा की उसके सवाल की वजह से ये दिदी तो रोने लगे गयी और उनके साथ उनका परिवार भी नही है। तो फिर शुभ्रा को रोता देखकर चुप करने के लिये कहा)

दिदी, आप ना बिल्कुल भी फिक्र मत किजिये। मैं ना हमेशा आपके साथ रहूँगी और महाराणी जी से कहकर आपको काम भी दिला दूँगी।

(बिंदिया की प्यारिसी, मासूमियत भरी बाते सुनते सुनते और पूरे चौबीस घंटे की ट्रेन की सफर से जल्द ही शुभ्रा गहरी नींद में चली गयी। )

   दिदी, हमारा गांव ना बहोत ही ऊपर है, मानो के जैसे पहाड़ी के बाजू में। हमारे गांव में ना बडासा किला है दिदी। हम ना कई बार बचपन से लेकर अब तक वहाँपर घूमने को जाते है। जब भी हमारे बापू, हमारी अम्मा हमसे हमारी शादी की रट लगाये बैठते है,  तब हम भी उसी किले में जाते है। वैसे वोह किला तो कई - कई सालोंसे पुराना है। महाराजा जी की पुरखों ने उसे बनवाया गया था। वैसे आप भी मेरे साथ चलिये कभी, हम दोनों मिलकर पूरा गांव घूमेंगे। और मेरे गाँव मे मेरी जितनी भी सारी सहेलियां है ना, उन सभी से हम मिलेंगे।

    मेरा छोटा भाई टिकू तो बहोत बहोत ही शरारती है। स्कूल तो जाता भी नही पूरे दिन भर गांव में भटकता रहता है। दिनभर पूरे गांव में से किसी ना किसी की तो शिकायत होती ही है। टिकू की शरारतों के बारे में।

(  अब जोरजोरसे बिंदिया हँसने लग गयी। जब बिंदिया अचानक शुभ्रा से बाते करते, उसकी तरफ देख लिया तो उसे सोया हुआ देखकर मन ही मन अपने आप से ही कहने लगी।)

दिदी, आप तो दिखने में परियों से भी खूबसूरत हो, आपके बाल तो कितने लंबे, घने है। भला ऐसा क्या हुआ होगा की आपके परिवारवाले आपके साथ नही है?  यह तो खुद रामजी ही जाने?

   पर है रामजी इस नयी दिदी को आप कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाये राजमहल में बस। इतनी सी छोटीसी मेरी बात आप मान जाइये। ये दिदी बस हँसते- मुस्कुराने लग जाये, इसका आप तो पूरा पूरा ध्यान रखियेगा। (यह अपने रामजी से कहकर बिंदिया ने एक कंबल शुभ्रा के ऊपर ओढ़ दिया। अब खुद बिस्तर में जाकर शुभ्रा की बाजू में जाकर सो गयी।

    शुभ्रा और उसकी जिंदगी की नयी कहानी क्या होगी? कल का सूरज शुभ्रा के जिंदगी में क्या अनोखा मोड़ लायेगा ये हम अगले पार्ट में जानेंगे।

   फिर मिलेंगे...

                     तुम मेरी चाहत हो - ६
           (एक खट्टी-मीठी , प्यार की कहानी)

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