तुम मेरी चाहत हो-३

Its Beautiful Love, family Drama Story
                          तुम मेरी चाहत हो - ३
                   (एक खट्टी-मीठी,प्यार की कहानी)

     
         चौबीसों घण्टो का लंबा सफर मानो शुभ्रा की जिंगदी की दिशा ही बदल ही देनेवाला था। सेकंड क्लास के डिब्बे में शुभ्रा बैठ गयी थी। बहोत सारी लोगो की उसपर नजर न जाये इसलिये उसने खुद के चहरे को अपनी साड़ी के पल्लू से घूंघट की तरह ढक दिया था।

   सारे वहाँ के पैसेंजर मे से कुछ पैसेंजर अपने ही आप की धुन में मगन थे। तो उनमें से कुछ पैसेंजर अपने बाल बच्चो के साथ, परिवार के साथ सफर कर रहे थे। आज पहली बार शुभ्रा ऐसी ट्रैन से सफर कर रही थी। हवाईजहाज से दुनिया भर घूमने ही नही बल्कि उड़ने वाली तितली आज न जाने क्यों ऐसी खामोश ही हो गयी की फिरसे हँसना भी भूल ही गयी।

    वहाँपर अब ट्रैन मैं ही कुछ न कुछ फेरीवाले खाने के पैकेट्स बेच रहे थे। शुभ्रा की भी अब तो अपनी पेट की याद आ गयी। उसने भी उस फिरते फेरी वालों से चटपटा कुछ (वडापाव), पानी की बोतल लेकर जल्दी से जल्दी भुक्कड़ की तरह खाना खा लिया। जब उसके पापी पेट की भूक खत्म हो गयी अब उसे भी कुछ चैन ही नही बल्कि चैन की नींद भी आ गयी। वोह अपने ही सिटपर पीछे रेलकर सोने की कोशिश करने लगी।

   पर अतीत उसका क्या? शुभ्रा का भी अतीत अब उसके सपमें  आ रहा था। अब शुभ्रा के साथ साथ हम भी उसके अतीत में चलकर देखते है की ऐसा क्या वजह है जो शुभ्रा इस हालातों में है।

  
                       **** देसाई  मेंशन ****

     पूना में तीन पिढियों से सजाया हुआ, बनाया हुआ देसाई मेंशन एक आर्कषक वास्तु थी। देसाई मेंशन में

दादाजी - श्रीधर देसाई
दादी - वंदना देसाई
डैड - विष्णु देसाई
और  मम्मा -  विशाखा देसाई
रहते थे।पूरा परिवार एकसाथ रहता था।

    प्रॉपर्टी की , जमीन जायदात, पैसों की और साथ ही साथ पूरे भारत मे उनके हॉस्पिटल्स की चैन थी। दादाजी और पापा दोनो भी इंडिया में मशहूर थे उनके हॉस्पिटल्स की चैन की वजहसे। दादी पूरे परिवार की देखभाल करती थी। तो विशाखा देसाई यानी शुभ्रा की मम्मा एक NGO चलाती थी।

    उनकी प्यारी से , एकलौती एक उम्मीद, सबके दिल का टुकड़ा "शुभ्रा" जो सबके दिल का चैन, सुकून या यूँ कहिये की धड़कन थी।  सारा परिवार हमेशा ही हँसता-खेलता रहता था। शुभ्रा के शोर से लेकर उसके हर से हर शरारतों से देसाई मेंशन का हर से हर कोना भी, अपने ही आप मे एक खूबसूरत सी यादों की जिंदा तस्वीरे ही बनाता था।

    दादाजी, दादी, डैड और मम्मा, का शुभ्रा को देखे बगैर एक दिन की भी शुरुआत होती थी। और शुभ्रा वोह तो सारे घरवालो की कभी हँसाती, कभी मनाती कभी अपनी छोटी- छोटी जिद के आगे झुकाती, तो कभी सारे घरवालों को अपने इशारे पर, अपनी हुकुम पर नचाती।

    सारा देसाई परिवार भी शुभ्रा को उसके जन्म से लेकर अबतक के हर से हर दिन इतना लाड़ -प्यार करता, इतना उसकी फिक्र करता, उसकी देखभाल करता की अगर जरा भी शुभ्रा को सर्दी या फिर खांसी भी हो जाये तो सारी देसाई फॅमिली शुभ्रा के रूम में रातभर उसके पास रहती थी।

    शुभ्रा के पैदा होने से अब तक इसिलिये शुभ्रा का रूम ही इतना बड़ा है की लगता है की मेंशन के हॉल जैसा। जब तक शुभ्रा का बुखार या सर्दी, खांसी कम नही होती तब तक पूरी फॅमिली ही टेंशन में रहती थी। उपरसे उसके रूम में दो से तीन डॉक्टर तो रहते ही थे उसकी देखभाल के लिये। सबसे प्यारी,नटखट,शैतान और फूलों से भी नाजुक, चांद से खूबसूरत परी ऐसी है शुभ्रा। उसने आज तक क़भीभी गम क्या होता है ये कभी एक पल के लिये भी नही महसूस किया था। पूरी प्रॉपर्टी की एकलौती एक वारिस थी शुभ्रा मगर उसमे घमंड रत्तीभर भी नही था। उसे दुनिया दरी की समझ थी पर आजतक वोह क़भीभी अकेली एक पल भी नही घूमी थी कही। जहाँ भी जाना हो महंगी महंगी गाड़िया, ऐरोप्लेन से पूरी दुनिया का सफर वोह करती थी मगर हमेशाही उसके पीछे तीन-चार सर्वन्ट तो रहते ही थे। शुभ्रा के कॉलेज से लेकर मेंशन तक दस -बारह बॉडीगार्ड की फ़ौज, उसके गाड़ी के आगे और पीछे और कुलमिलाकर ८-१० गाड़ियों की झुंड हमेशा ही रहती उसकी प्रोटेक्शन के लिये।

     पर शुभ्रा के जन्म से अब तक यानी इन २२ सालोंसे कोई था जिससे शुभ्रा का उस घरमे पैदा होने से लेकर अबतक मानो अपशकुन ही लगता था। "शुभ्रा" तो उसकी जिंदगी का उसे ग्रहण लगता था। वोह थे "मनीष देव" वोह थे शुभ्रा के मामाजी, यानी शुभ्रा के मम्मा विशाखाजी के सगे बड़े भाई।

   देव फॅमिली भी ऊंचे खानदान, रईस खानदानों में से एक थी। उनकी कई सारी कपड़ो की मील देश के कोने कोने में थी। जो उनका बिज़नेस उनके २ पिढियों से चल रहा था। पर मनीष मामाजी के बड़े बड़े शौख के कारण, कई सारी गलत आदतों के कारण उनका नाम तो मानो समाज मे याफिर हाई सोसाइटी में भी अब तो ब्लाक लिस्ट में ही था। इसी वजहसे शुभ्रा के जन्म के बाद यानी दो ही सालो के बाद, जब शुभ्रा के नानाजी गुजर गये थे तब विशाखा जी की, जो अपने मायके में आखरी रिश्ते की कड़ी बची थी वोह भी टूट चुकी थी। इसी दौरान मनीष मामाजी विशाखा जी को बार बार धमका रहे थे।

    दरसल, शुभ्रा के नानाजीने, उनके गुजरने के बाद बहोत ही बड़ी प्रोपर्टी विशाखा जी और शुभ्रा के नाम पर कर दी थी। इसी वजहसे गुस्सेसे बौखलाये मनीष मामाजी थे।

   मनीष मामाजी तो, विशाखाजी और शुभ्रा, दोनोंके नाम वसीयत को अपने नाम करने के लिये कोशिश कर रहे थे। इसी वजहसे, अपने मायके से विशाखाजी और उनके साथ- साथ पूरे देसाई फॅमिलीने मनीष मामाजी और उनकी फॅमिली से रिश्ता ही तोड़ दिया था।

      मनीष मामाजी अपनी पत्नी उषा देव और उनका एकलौता एक बेटा आशीष देव के साथ रहते थे। आशीष जो शुभ्रा के उम्र में ६ साल से बड़ा था। आशीष जो की बिल्कुल ही मनीष मामाजी की कार्बन कॉपी था। सारे की सारे दुनिया की बुराइयां आशीष में थी।

  दरसल मनीष मामाजी शुभ्रा को उसके जन्म से ही नफरत करते थे। उसकी और एक वजह भी थी। विशाखा जी यानी शुभ्रा की मम्मा, मनीष मामाजी से पांच साल बड़ी थी। विशाखाजी और विष्णु देसाई यानी शुभ्रा के डैड की शादी मनीष मामाजी के श्यादी से चार साल पहले हुई थी। 

   विशाखाजी की कोख उनकी श्यादी के बाद कई सालों तक सुनी ही थी। जब मनीष मामाजी का आशीष पैदा हुआ तो दोनों भी (विशाखाजी और विष्णुजी) आशीष को बहोत ही लाड़ प्यार करते थे। इसी वजहसे मनीष मामाजी के मन मे "देसाई परिवार के पुरखो से लेकर अबतक की, मेहनत की कमाई "प्रोपर्टी" का लालच बढ़ता ही चला जा रहा था। शेखर मामाजी के मन था के आशीष को कानूनी तौर पर विशाखा दिदी, विष्णु जीजू और देसाई परिवार अडॉप्ट कर ले।

   कई बार, खुद ही मनीष मामाजी और उनकी पत्नी यानी उषा मामीजी, दोनो भी हँसी-मजाक में जानबूझकर विशाखा जीजी, विष्णु जिजाजी और उनके परिवारवालो से आशीष को अडॉप्ट करने के लिये कहते थे। मगर हमेशा ही विशाखाजी और विष्णुजी उनकी बातों को नजर अंदाज कर देते थे। देसाई परिवार को हमेशाही उनके देसाई मेंशन में किसी नन्हे से मेहमान की आस थी जो देसाई खून का वारिस हो। 

    श्रीधरजी(दादाजी),वंदनाजी(दादी) हमेशा ही अपनी बहू विशाखाजी और अपने बेटे विष्णुजी का हौसला बढ़ाने का काम करते। हमेशा ही उन दोनों को, उनकी आस को बढ़ावा देते थे। उन दोनों से हमेशा ही कहते थे की "जरूर हमारे मेंशन, एक ना एक दिन, हमारा अपना ही वारिस आयेगा ही। जो भी वोह होगा, बेटा याफिर बेटी हम सभीके खुशियो की चाबी होगा याफिर होगी वोह।बस तुम दोनो भी धीरज रखो और कन्हैयाजी से बिनती करते रहो। हमे हमारे कन्हैय्या लाल पर पूरा भरोसा है वोह हम दोनों की (दादाजी,दादीजी) की बात कभी भी नही टालेंगे।

    वक्त समय के गती के साथ आगे बढ़ता ही चला गया। मनीष मामाजी के आशीष के पैदा होने के ७ साल बाद देसाई परिवार में नन्ही सी प्यारी सी परियों की रानी यानी "शुभ्रा " का जन्म हुआ। पूरा देसाई परिवार मानो हजारो सालो की खुशियां एकसाथ जी रहा था। कितने सारे सालोंसे, देसाई परिवार ने सपना संजोया था वोह "शुभ्रा" के आने से पूरा हुआ। इसलिये देसाई परिवार के दिल का टुकड़ा थी "शुभ्रा"। तो दूसरी ओर मनीष मामाजी, उषा मामीजी और आशीष तीनो के लिये मानो मनहूस साया थी शुभ्रा।

   शुभ्रा के बचपन से ही विशाखाजी की "उम्मीद" नाम से चली इस NGO की वजहसे हजारो, लाखो बच्चो की एजुकेशन हो रही थी। उसी नाम से उन्होंने ट्रस्ट भी खोला था। "उम्मीद ट्रस्ट" के लिये, हजारो एक्कर की जमीन को विष्णुजीने ट्रस्ट के नाम किया था ।

      जब छोटीसी शुभ्रा, दूसरी स्टैंडर्ड में थी उसी साल, दादाजी, दादी और शुभ्रा के डैडने शुभ्रा की मम्मा यानी विशाखाजी को उनके बर्थडे के दिन उस हजारो एक्कर की जमीन के कागजाद सौप दिये थे, बर्थडे के गिफ्ट में।

    पर कहते भी है की कई बार हम दूसरों की जादा भी भलाई करने जाये ये बात कई लोगो को हजम ही नही होती। उनमे एक थी देव फॅमिली मनीष मामाजी, उषा मामीजी, आशीष। जिन्हें अब देव फॅमिली की प्रॉपर्टी के साथ-साथ "देसाई फॅमिली" की भी प्रोपर्टी चाहिये थी। वोह बस हमेशा ही हमेशा "शुभ्रा" को सारे देसाई फॅमिली से दूर करके सारी देसाई फॅमिली की प्रॉपर्टी पर खुद का कब्जा जमाना चाहते थे। वोह तो बस दिन-रात "शुभ्रा" और पूरी देसाई फॅमिली की मौत के सपने अपने सोते-जगती आँखो से देखते थे।


    फिर मिलेंगे.....

                          तुम मेरी चाहत हो - ४

                   (एक खट्टी-मीठी ,प्यार की कहानी)

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