मैं ही उसे आदत बना बैठ़ा..

तु मिलता फुरसत से तेरी, मैं तुझमें खोया, भुल मेरी थी।


पनाह समझकर ही बैठा था वो, पल दो पल ठहरा था वो,
मैं ही उसे पहचान समझ बैठा।
कुछ दिनों से रोज जब आता, अपनी उड़ती हुई दुनिया कि हर बात बताता,
मैं ही उसे आदत बना बैठा।
रोज कि इन मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा, हर शाम वो मुझमें ढ़ला,
मैं ही उसे अपना मान बैठा।
वो ठहरे जरा देर, मेरे साये में, उडते परों से थक कर, धूप से हार कर,
मैं इंतजार में आसमान बन बैठा।
वो ले आया अपना साथी, तिनकों कि जुगाड़, हसता सा परिवार बना
मैं उसकी खुशी को जहान बना बैठ़ा।
वो कैसे टिके एक जगह जीस के लिए खुला आसमान तैयार है।
मैं भावनाओं को जड़ों में जकड़े दरख़्त बन बैठा।
हा, कह दिया होगा उसने भी कभी भावूक पल में "प्यार हैं"
मैं प्यार, ममता, खयाल बन बैठा।
वो उड़ जायेगा कभी, हवाओं का मुसाफिर, भटकता हुआ पीर
ये सवाल भी बेखयाल बन बैठा।
वो कभी तो ठहर जाएगा, उड़ते हुए फिर एक बार, फिर एक पल,
रोज अनगिनत ऑंखों से नापता आसमान मैं इंतजार में आज कल।
मैं उसकी यादों में ताजमहल बन बैठा।
warsha