सुलोचना के ससुराल वाले बच्चे को देखने आये थे। सुलोचना को बच्चे को जन्म दिए हुए दो महीने हो गए थे, वह एक गृहिणी थी। इस दौरान सारे रिश्तेदारों उसे मिलने जा रहे थे। बेटी के बच्चे को संभालना एक माँ के लिए एक वास्तविक कसरत है। एक तरफ बेटी और बच्चे की देखभाल, दूसरी तरफ आने-जाने वाले मेहमानों की देखभाल, घर की देखभाल।
इसमें बच्चा पूरी रात जागता रहेगा, फिर मां पूरी रात जागती रहेगी ताकि लड़की सो सके और सुबह वह अपनी सारी ताकत इकट्ठा करके फिर से काम पर लग जाएगी। इस काल में माँ को इतनी शक्ति कहाँ से मिलती है?
आज सुलोचना के ससुर की कुछ महिला बच्चे को देखने आयीं। बच्चे को तारीफ दी गयी, बातचीत हो गई, खाना ख़त्म हो गया। उन्होने बच्चे के हाथ में सोने की अंगूठी पहनाई। कई जगहों पर ऐसा रिवाज है कि जब बच्चे को सोना चढ़ाया जाता है तो महिला को तुरंत साड़ी पहना दी जाती है। यदि आप 100-200 रुपये हाथ में देते हैं, तो उसी रेंज की एक साड़ी...अंगूठी बनाई है तो थोड़ी महंगी साडी. इसलिए सुलोचना की मां साड़ियां भी ले आईं. लेकिन कोई भी साड़ी हलकी नही थी, अगर किसी ने 50 रुपए भी दे दिए तो उनकी मां ने उन्हें अच्छी साड़ी पहना देती थी। माँ को अपने पोते के आने की खुशी के सामने यह खर्च कुछ भी नहीं लगा।
“चलो साड़ी पहनते हैं..अंदर आओ”
रिंग देने के बाद सुलोचना की मां ने महिलाओं को अंदर बुलाया।
"अरे क्यों, इसकी कोई जरूरत नही"
महिलाओं ने औपचारिकता के तौर पर 'नहीं' कहा, लेकिन अंदर ही अंदर खुश हो रही थी |
महिलाएं" हां नहीं हां नहीं" कहती हुई अंदर चली गईं। साड़ियाँ बहुत अच्छी थीं, लेकिन महिलाएँ संतुष्ट नहीं लग रही थीं। उन्होंने सहजता से अपनी साड़ियाँ पहनीं और विदा ली। सुलोचना की माँ बहुत थक गयी थी. महिलाओं के जाने के बाद उसने राहत की सांस ली और कुछ देर लेटी रही. सुलोचना ने पूछा,
“मां सबको साड़ी क्यों पहनाती थीं? अंगूठी केवल दो महिलाओं ने दी थी”
"रहने दो ... मेरे पोते की प्रशंसा के आगे सब कुछ बेकार है"
सुलोचना की माँ सुलोचना की गोद में उस प्यारे से बच्चे को देख कर उसकी नजर निकालने लगी |
"और हाँ, अपने ससुराल वालों का हमेशा सम्मान करना होगा, कल जाके ऊन लोगो से तुझे ताने ना मिले इसलीये ये सब कुछ चल रहा है"
कुछ देर के लिए दोनों लेट गयी, सुलोचना का फोन बजा..
"हैलो.. दरअसल हमने आपके खुशी के लिए साड़ियाँ पहनी थीं, लेकिन हमें साड़ियाँ पसंद नहीं आईं.. तुम्हारी माँ को इससे अच्छी साड़ियाँ पहनानी चाहिए थीं"
सुलोचना शॉक हुई.. माँ पास में ही थी, मोबाइल की आवाज़ तेज़ होने के कारण उसे सब सुनाई दे रहा था। कार से लौटते वक्त इन महिलाओं ने कुछ बाते की होगी, उन्होंने मूर्खों की तरह फोन कर ये बात कहने की हिम्मत कर ली. ..
सुलोचना को समझ नहीं आ रहा कि क्या कहे, मां को बताएगी तो फिर डांटेगी, वापस जाकर नई साड़ियां ले आएगी.. खर्चा अलग होगा। माँ को कितना करना चाहिए? सुलोचना को ससुराल वालों पर गुस्सा आया लेकिन मां सामने थी और कुछ नहीं कह सकी. लेकिन माँ ने फोन अपने पास ले लिया..
"हैलो, हेलो, दीदी..क्या आप पहुची?"
"अभी तक नहीं.."
“ठीक है अगर तुम्हें साड़ियाँ पसंद नहीं आती तो तुरंत आ जाओ इधर, तुम एक काम करो..तुरंत वापस आ जाओ”
उन महिलाओंको फिरसे लालच हुआ, नई साड़ियाँ लेने के लिए उन्होंने कार आधे रास्ते से वापस मोड़ ली।
"माँ? यह कैसी महिलाए है? इतना लालच ठीक नही…”
माँ कुछ नहीं बोली. कुछ देर बाद महिलाएं बड़े मूड में लौटीं।
इधर-उधर देखने लगी कि नई साड़ियों बॉक्स कहा है..
“चलो अंदर.मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी”
महिलाएं उत्साहित थीं.. माँ ने धीरे से बच्चे के हाथ से अंगूठी उतारकर उसके हाथ में रख दी और बोली..
“आपने बच्चे को बहुत आशीर्वाद दिया है..बच्चे को सोने जैसा कुछ नहीं चाहिए। और हाँ, आपकी ये साडीया यही रख देना.. मै किसीं सभ्य और सुसंस्कृत महिला को ये दे देंगे.."
सुलोचना माँ का यह रूप देखती रही।
"माँ?"
“हाँ बेबी, एक बात हमेशा याद रखना. जब तक सामने वाला विनम्र है, उसे सम्मान देना चाहिए।
लेकिन जिस दिन वह अपनी मर्यादा छोड़ देंगे, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना. अगर किसी ने तुम्हारे ससुराल वालों से इस बारे में बात की और तुम्हे कुछ सूनना पडा तो बताना.. मुझसे बुरा कोई नही हॊगा।”
तात्पर्य यह , कि मातृत्व एक महिला को बहुत मजबूत बनाता है! (सच्ची घटना पर आधारित)
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