ससुराल गेंदा फूल

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ससुराल गेंदा फूल 


राशी का आज सोमवार का व्रत था ! सुबह जल्दी उठकर ताजा पाणी भरकर, फटाफट काम निपटा रही थी राशी ! राशी एक गाव मे रहनेवाली सिधी साधी गृहिणी थी ! उसके लिये उसका घर, सास -सासुर, नणंद, देवर, पती और बच्चे ही सब कुछ थे ! अपने घरके लिये राशी सबकुछ बडे प्यारसे करती! घर मे उलझी राशी को सोमवार के दिन मंदिर मैं कुछ सहेलीया मिल जाती बस वही उसके लिये कुछ बदलावं था ! 
राशी पुरे घरको एकेले संभाल लेती! फिर भी सास को राशी का मंदिर मे कुछ देर रुककर सहेलियों के साथ वक्त बिताना पसंद नाही आता!  आज भी राशी को मंदिर जाता देख उसके सास ने टोक ही दिया, " राशी मंदिर बस दर्शन करने जाना, गप्पे मारने नहीं !" 

सास की बात का थोडा तो बुरा राशी को जरूर लागा लेकिन उलटा जवाब ना देनेकी सिख जो माँ ने दी थी, बस उसिके वजह से चूप बैठ गयी !

कुछ दिनो बाद चचेरी सास के यहा से पूजा का निमंत्रण आया ! राशी की चचेरी सास शहर मे रहती थी ! पूजा के लिये राशी अपने पुरे परिवार सहित चचेरी सास के घर पोहच गयी ! 
२ दिन तयारी और पूजा मे निकाल गये ! चचेरी सासू माँ की बहू (रावी ) भी बडे मन से सब कर रही थी ! रावी एक कंपनी मे कार्यरथ थी ! पूजा के २ दिन बहुत काम था ! हर कोई थक गया था ! बस रावी को थकने की इजाजत नही थी ! चचेरी सास के आग्रह से २ दिन और हम रुक गये ! रावी की दिनचर्या राशी देख रही थी ! सुबह जल्दी उठना बच्चे, पती का और अपना टिफिन बनाना ! सबका नाश्ता, दुपहार का खाना बनाना ! काम के लिये बाई आती हैं, उसे हर बार समझाना ! ऑफिस जाने से पहले सासू जी की दवाईया देना ! इस सब मे रावी का बिना नाश्ता किये ऑफिस भागना ! राशी को ये देख कर बुरा लगा !

शाम की रावी घर आयी तो आते हुये सब्जीया भी लेते आयी ! आते ही किचन मे घूस गयी ! एक ग्लास पाणी भी आराम से बैठ के पी न सकी ! राशी भी रावी के पास किचन मे आयी ! राशी ने इस बारे मे रावी से बात की तो रावी ने कहा, " दीदी, आपके साथ भी गाव में कुछ अलग नही होता होगा ! गाव हो या शहर ससुराल ससुरालही होता हैं ! आप कितना भी करो, कम पड ही जाता हैं !" 

इतने में चचेरी सास की आवाज आयी, " रावी अब कुछ खाने को मिलेगा या नही?  मुझसे भूक बरदाश्त नही होती पता हैं ना !" आगे राशी के सास से कहा, " आज काल की लडकीया काम ही नही करती, सब कुछ करवाना पडता हैं ! " राशी की सास भी, " हा, जीजी आप सच कह रही हो !" कहती हैं !  किचन राशी ये बाते सुनकर रावी से कहती हैं, " ससुराल गेंदा फूल !"  

राशी रावी के हातसे काम लेकर उसके हात में चाय थमा देती हैं ! और कहती हैं, " रावी हम दोनो एक ही नाव में सावर हैं ! जितना हो सके एकदुसरे को संभालना हैं ! " ये कह कर नाश्ता बनाने में लग जाती हैं ! और रावी बडे दिनो बाद सुकून से चाय की चुस्कीया लेती हैं !


समाप्त..