और बारिश का मौसम आ गया..........!!
वोह एक शाम थी||दीवानीसी,मस्तानीसी||बहोत हीं अजीबसी थी वोह शाम||पता नहीं लेकिन वोह आज भीं मेरे दिल के बहोत करीब हैं||
वोह शाम भीं...और "वोह" भीं...! पता हैं तुम्हे,मै उस शाम को समंदर के किनारोंपर जा रही थी..न जाने कैसे अचानक क्या हूँआ...आकाश काला निला होने लगा ,बादल गरजने लगे...और कुछ ही पल मे जोरसे बारिश आगयी....मेरे पास तो छाता नहीं था...और कोई पेड़ या मका़न का सहारा भीं नहीं था...बावलीसी होगयी थी में..मनमे हलचल मची थी..शोर मचा था..क्या करु कुछ समझमे नहीं आ रहा था...बस् भिगने के अलावा मेरे पास कोई "option" नहीं था..और मे भिगने लगी...उस बारिश में.......समंदर के किनारोंपर मुझे जाना हीं था...पर कैसें जाती थी में..अकेले वहा...डर लग रहा था मुझे.....बहोत डरी हुयी थीं में...और अचानक से वहा सड़कपर मैंने एक "बाईक" और एक "लड़का" देखा...उसे देखकर तो मैं कुछ ज्यादाही डर गयी थी...लग रह था कीं अब कुछ तो होनेवाला हैं... न जाने क्या होगा..? मेरा मन तो बस् घरको ढूंढ रहा था.....इतनी बैचैन हुई थी मैं की मनमें गंधे गंधे सवाल आ रहे थें...और वोह लड़का धीरे धीरे से मेरे पास आ रहा था..वोह जैसै जैसै मेरे करीब आ रहा था...मेरी घबराट बढ़ती ही जा रही थीं...
और वो मेरे करीब आगया...मैं तो खुदसेही बाते करनी लगी थीं..मुझे लग रहा था...उस लड़के को एक थप्पड लगा दूँ....एक लाथ मारु...उसकी गर्दन उठाकर उसे फेक लूँ.........बस इनमे तो में खो गयी थीं....क्या में आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ क्या...? उस लड़के ने बहोत प्यारसे पुछा था....मे बस् उसे देखती हीं रह गयी...अनजान था वोह लड़का...पर लग तो ऐसा रहा था कीं..,जैसै बरसो की पहचान हैं.....ओठोंपर तो "अजनबी...,मुझको इतना बतादो....दिल मेरा क्यूँ परेशान हैं...........!! बस् यही गाने के बोल आ रहे थें.... उसकी आँखोंमें प्यार था...एक सुकून था...जो मेरे दिल को सुकून दे गया था...उसने मेरा हाथ थमा...और चलो किनारोंपर चलते हैं...वोह समंदर कि लहरे...,नारियल का ऊँचा पेड़..,पन्नो कि हलचल..., और डूबता हूँआ सूरज...,देखना हैं ना तुम्हें...?यह सुनकर,मेरी आँखे सुकूनसें रोने लगी थीं...मैने उस लड़केसे पुछा..,क्या अजनबी सचमें अजनबी होते हैं क्या...?फिर उसने मेरें सवाल का जवाब दिया...बोला कीं "अजनबी तब तक अजनबी होता हैं जब तक आप खुद उसे अजनबी नजरोंसें देखते हैं..." वरना, इस दुनियाँ में जान होकर भीं अनजान महसुस होनेवाले भीं कुछ कम नहीं हैं... क्या सही कह दिया ना हमने "जी"....? उसकी वो बाते सुनकर मैं पुराने यादोंमे गयी थीं...और यादोंमे कोई हसताँ हैं.. कोई रोताँ हैं... तो कोई हसतेहसते रोताँ हैं.. तो कोई रोते रोते हसताँ हैं...बस् में इतनी रो रही थीं कीं बारिश भीं इतनी बरस नहीं रही थीं...जखमोंसे भरी हुई जिंदगीं तो जि रही थीं ना मैं....पर इन जखमोंपर,सुखे घाँवोंपर मरहम लगाने के लिए कोई नहीं था....लेकिन उस अनजान..अजनबी ने तो मेरी अनकहीं ,अनसुनी कहाणी सुनकर प्यार का मरहम प्यारसे लगाया था......सचमें वो शाम कुछ अजिब हीं थीं... दोस्ती तो हुई थीं हमारी...बहोत सारी बाते करते करते मैंने एक सवाल पुछाँ...आपको क्या अच्छा लगता हैं....? तो उसने बहोत खुबसुरत जवाब दिया..."मुझे "सांझ" प्यारी लगती हैं.., मुझे "सवेरा" प्यारा लगता हैं.. मुझे "रैना" भीं प्यारी लगती हैं... पर सच कहुँ जी...मुझे तो आपकी "रूहानियत" सबसे प्यारी.. सबसे न्यारी लगती हैं...!! सचमुच मेरा दिल तो पिघल गया था...उसीका हाथ अब मैने थमा था...हाथोमें हाथ लेकर हम दो अनजान... एक दुसरे कि जान बनकर...उस समंदर पर जा रहे थें....सब कुछ महसूस करने के लिए..थंडी हवा..,पपिहा कीं पिहूँ पिहूँ..,लेहरोंका लहराना...बारिश का बरसना...अनसुनासा गीत...कंधोंपर सर रखकर...हाथो में हाथ थामकर बस् शांतीसे बैठना...यह सब कुछ महसूस किया था हमने..तनमन का बहकना कुछ अजीब हीं था... वोह शाम..थंडी हवा...समंदर कि लहरे...पन्नो कि हलचल..डूबता हूँआ सूरज...और वोह प्यारासा अजनबी...एक लड़का.. एक लड़की...भिगीसी..भागीसी..ओ~~क्या शाम थी वो...दीवानीसी..मस्तानीसी...
❣️❣️लग जा गले कहकर....कभीं अलविदा ना कहना...और यह कहकर अलवीदा हीं कह दिया...पर वो लम्हा आज भीं यादगार बनकर रहा हैं इस दिल में....हर बारिश में मुझें याद दिलाती हैं यह शाम.....।।बस् एक शाम...किसी प्यारेसे अजनबी के नाम...❣️❣️
वोह एक शाम थी||दीवानीसी,मस्तानीसी||बहोत हीं अजीबसी थी वोह शाम||पता नहीं लेकिन वोह आज भीं मेरे दिल के बहोत करीब हैं||
वोह शाम भीं...और "वोह" भीं...! पता हैं तुम्हे,मै उस शाम को समंदर के किनारोंपर जा रही थी..न जाने कैसे अचानक क्या हूँआ...आकाश काला निला होने लगा ,बादल गरजने लगे...और कुछ ही पल मे जोरसे बारिश आगयी....मेरे पास तो छाता नहीं था...और कोई पेड़ या मका़न का सहारा भीं नहीं था...बावलीसी होगयी थी में..मनमे हलचल मची थी..शोर मचा था..क्या करु कुछ समझमे नहीं आ रहा था...बस् भिगने के अलावा मेरे पास कोई "option" नहीं था..और मे भिगने लगी...उस बारिश में.......समंदर के किनारोंपर मुझे जाना हीं था...पर कैसें जाती थी में..अकेले वहा...डर लग रहा था मुझे.....बहोत डरी हुयी थीं में...और अचानक से वहा सड़कपर मैंने एक "बाईक" और एक "लड़का" देखा...उसे देखकर तो मैं कुछ ज्यादाही डर गयी थी...लग रह था कीं अब कुछ तो होनेवाला हैं... न जाने क्या होगा..? मेरा मन तो बस् घरको ढूंढ रहा था.....इतनी बैचैन हुई थी मैं की मनमें गंधे गंधे सवाल आ रहे थें...और वोह लड़का धीरे धीरे से मेरे पास आ रहा था..वोह जैसै जैसै मेरे करीब आ रहा था...मेरी घबराट बढ़ती ही जा रही थीं...
और वो मेरे करीब आगया...मैं तो खुदसेही बाते करनी लगी थीं..मुझे लग रहा था...उस लड़के को एक थप्पड लगा दूँ....एक लाथ मारु...उसकी गर्दन उठाकर उसे फेक लूँ.........बस इनमे तो में खो गयी थीं....क्या में आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ क्या...? उस लड़के ने बहोत प्यारसे पुछा था....मे बस् उसे देखती हीं रह गयी...अनजान था वोह लड़का...पर लग तो ऐसा रहा था कीं..,जैसै बरसो की पहचान हैं.....ओठोंपर तो "अजनबी...,मुझको इतना बतादो....दिल मेरा क्यूँ परेशान हैं...........!! बस् यही गाने के बोल आ रहे थें.... उसकी आँखोंमें प्यार था...एक सुकून था...जो मेरे दिल को सुकून दे गया था...उसने मेरा हाथ थमा...और चलो किनारोंपर चलते हैं...वोह समंदर कि लहरे...,नारियल का ऊँचा पेड़..,पन्नो कि हलचल..., और डूबता हूँआ सूरज...,देखना हैं ना तुम्हें...?यह सुनकर,मेरी आँखे सुकूनसें रोने लगी थीं...मैने उस लड़केसे पुछा..,क्या अजनबी सचमें अजनबी होते हैं क्या...?फिर उसने मेरें सवाल का जवाब दिया...बोला कीं "अजनबी तब तक अजनबी होता हैं जब तक आप खुद उसे अजनबी नजरोंसें देखते हैं..." वरना, इस दुनियाँ में जान होकर भीं अनजान महसुस होनेवाले भीं कुछ कम नहीं हैं... क्या सही कह दिया ना हमने "जी"....? उसकी वो बाते सुनकर मैं पुराने यादोंमे गयी थीं...और यादोंमे कोई हसताँ हैं.. कोई रोताँ हैं... तो कोई हसतेहसते रोताँ हैं.. तो कोई रोते रोते हसताँ हैं...बस् में इतनी रो रही थीं कीं बारिश भीं इतनी बरस नहीं रही थीं...जखमोंसे भरी हुई जिंदगीं तो जि रही थीं ना मैं....पर इन जखमोंपर,सुखे घाँवोंपर मरहम लगाने के लिए कोई नहीं था....लेकिन उस अनजान..अजनबी ने तो मेरी अनकहीं ,अनसुनी कहाणी सुनकर प्यार का मरहम प्यारसे लगाया था......सचमें वो शाम कुछ अजिब हीं थीं... दोस्ती तो हुई थीं हमारी...बहोत सारी बाते करते करते मैंने एक सवाल पुछाँ...आपको क्या अच्छा लगता हैं....? तो उसने बहोत खुबसुरत जवाब दिया..."मुझे "सांझ" प्यारी लगती हैं.., मुझे "सवेरा" प्यारा लगता हैं.. मुझे "रैना" भीं प्यारी लगती हैं... पर सच कहुँ जी...मुझे तो आपकी "रूहानियत" सबसे प्यारी.. सबसे न्यारी लगती हैं...!! सचमुच मेरा दिल तो पिघल गया था...उसीका हाथ अब मैने थमा था...हाथोमें हाथ लेकर हम दो अनजान... एक दुसरे कि जान बनकर...उस समंदर पर जा रहे थें....सब कुछ महसूस करने के लिए..थंडी हवा..,पपिहा कीं पिहूँ पिहूँ..,लेहरोंका लहराना...बारिश का बरसना...अनसुनासा गीत...कंधोंपर सर रखकर...हाथो में हाथ थामकर बस् शांतीसे बैठना...यह सब कुछ महसूस किया था हमने..तनमन का बहकना कुछ अजीब हीं था... वोह शाम..थंडी हवा...समंदर कि लहरे...पन्नो कि हलचल..डूबता हूँआ सूरज...और वोह प्यारासा अजनबी...एक लड़का.. एक लड़की...भिगीसी..भागीसी..ओ~~क्या शाम थी वो...दीवानीसी..मस्तानीसी...
❣️❣️लग जा गले कहकर....कभीं अलविदा ना कहना...और यह कहकर अलवीदा हीं कह दिया...पर वो लम्हा आज भीं यादगार बनकर रहा हैं इस दिल में....हर बारिश में मुझें याद दिलाती हैं यह शाम.....।।बस् एक शाम...किसी प्यारेसे अजनबी के नाम...❣️❣️
कु.हर्षदा नंदकुमार पिंपळे
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