निर्णय

A short story about love and sacrifices of a woman towards her family and specially for her husband.

"सीमा,क्या हुआ, आज बड़ी देर कर दी तुमने ऑफिस से आने में, घड़ी देखी हैं, साढ़े सात बजे है।"रोहिणी जी ने बहु को, ऑफिस से देर से आने के लिए टोका। 

"मांजी, मैंने परसों आपको बताया था ना कि,आज ऑफिस में गीता की फेयरवेल पार्टी होगी, तों मुझे थोड़ी देर हो सकती हैं,आप शायद भूल गई।"

"अरे हां, तुमने बताया तों था परसो,पर आज भी बताकर जाना चाहिए था ना, मैं तो बिल्कुल ही भूल गई थी।पता है ,रक्षा भाभी आई थी, उनके पोते के मुंडन का न्योता देने,बस अभी दो मिनट पहले ही गई है। तुम्हारे बारे में पुछ रही थी, मैंने कहा कि अभी ऑफिस से नहीं लौटी है तो कहने लगी कि इतनी देर तक बाहर रहती है,आप कैसे इजाजत दे देती हैं? मुझे तो बहुत बुरा लगा सुनकर। आगे से कभी इतनी देर ना हो, इसका ध्यान रखना, नहीं तो सीधा घर में बैठो।"रोहिणी जी ने जरा नाराजगी जताते हुए कहा।

"ठीक है मांजी, मैं आगे से ध्यान रखूंगी, सोरी।"सीमा काफी थकी हुई थी सो उसने बहस में उलझकर अपनी एनर्जी वेस्ट करने के बजाय, माफ़ी मांग कर बात को खत्म करना ही उचित समझा, और अपने कमरे में फ्रैश होने के लिए चली गई।

कमरे में जाते से ही वहीं जाना पहचाना सा नजारा आंखों के सामने था। बिस्तर पर आराम से मोबाइल लिए लेटा हुआ मोहित, उसके कपड़े और जुते,जो ऑफिस से आने के बाद उसने,यहां वहां बिखेरे हुए थे,और कोने में पटका हुआ ऑफिस का बेग।सब सामान करीने से जमाकर वह फ्रेश होने चली गई।यह रोज की कहानी थी। फिर मोहित से पुछकर  कि वो चाय लेगा या कॉफी,वो नीचे चली आई।

मांजी और मोहित दोनों ने कॉफी की इच्छा जताई तो, उसने अपने लिए भी कॉफी ही बना ली, अपने आप से पुछने की जरूरत भी नहीं समझी।

तब तक मोहित भी नीचे आ गया था। तीनों हॉल में बैठकर कॉफी पी रहे थे, रोहिणी जी अभी भी थोड़ी नाराज़ सी ही थी,सो चुपचाप बैठी थी। सीमा और उनके बीच, रोज़ की तरहां बातें नहीं हो रही थी। हमेशा की तरह मोबाइल में घुसे रहने वाले मोहित को भी, ख़ामोशी में छुपी कुछ गडबड महसूस हुई,तो उसने रोहिणी जी से पुछा ही लिया।

"क्या बात है मां,आपका मूड आज कुछ उखड़ा हुआ हैं, कुछ हुआ हैं क्या?" उसने मां से पुछा।

मोहित के पुछने पर तों रोहिणी जी और भी भड़क गई,कि उसे समझ में नहीं आ रहा है कि मां क्यो नाराज़ हैं?क्या उसे अपनी बीवी के ऑफिस से देर से आने पर कोई दिक्कत नहीं थी?दरअसल रोहिणी जी को सीमा का नौकरी करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था,उस पर यदि कोई इस तरह की बात हो जाती थी तो उनका गुस्सा जैसे सातवें आसमान पर पहुंच जाता था। उन्होंने एक जलती हुई नजर, मोहित पर डाली,और सीमा के सामने ही सारी बात, शिकायत स्वरुप मोहित को बता दी।

रोहिणी जी की नाराज़गी की दूसरी  वजह ये भी थी कि सीमा और मोहित की शादी को चार साल हो गए थे,पर अभी भी वे लोग बच्चें के विषय में नहीं सोच रहे थे।जब भी जिक्र करो तो टाल-मटोल कर देते थे।

सीमा अंदर ही अंदर कुढ़ते हुए सब सुन रही थी, और जवाब तो देना चाहती थी, पर चुप रही। उसे शायद उम्मीद थी कि मोहित, उसके पक्ष में कुछ कहेगा। मगर मोहित ने केवल यह कह कर मां को शांत रहने को कहा कि लोगों को बकवास करने की आदत होती हैं, उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते।"चलों आप नाराजगी छोड़ो, सीमा से ये गलती दोबारा नहीं होगी, हैं ना सीमा,देखो सीमा भी सोरी कह रही है,चलों सीमा तुम भी सोरी बोलकर मामला खत्म कर दो।"मोहित के लिए ये कहना कितना आसान था, मां को खुश करने के लिए उसने, गलती ना होने के बावजूद सीमा से माफ़ी मांगने को कहा दिया, जबकि वो पहले ही माफी मांग चुकी थी।

सीमा को बहुत बुरा लगा, क्योंकि वह मोहित से कुछ और ही जवाब की उम्मीद रखती थी। वैसे तों उसने सीमा को कुछ कहां नहीं,पर बिना कुछ बोले ही, बहुत कुछ बोल गया।

सब काम निपटाकर सीमा जब सोने के लिए कमरें में आई,तो फिर वही जाना-पहचाना माहौल, मोहित खर्राटे लेकर सो रहा था।उसने सीमा के आने का इंतजार तक नही किया।

थोड़ी बहुत दुसरे दिन की तैयारी करके वो भी सोने चली गई। मगर नींद ही नहीं आ रही थी।आज इतने सालों में उसने कभी भी मांजी को उल्टा जवाब नहीं दिया था,उनकी जली कटी बातें भी एक कान से सुनकर, दुसरे कान से निकाल देती थी,पर आज उसे ना जाने क्यों खुद पर ही बहुत गुस्सा आ रहा था।उसका मन कर रहा था कि खुब जोर जोर से चिल्लाएं ताकि मांजी और उनके वो तथाकथित रिश्तेदार, पड़ोसी, और फ्रेंड्स सुन सके कि आखिर हकिकत क्या है.....

मगर कभी खुद उसका हौसला ना हुआ तो कभी माता-पिता के संस्कारों ने उसे ऐसा करने से हर बार रोक दिया था।और कभी मोहित के प्रति प्यार और कर्त्तव्य की वजह से रुक गई थी।

वो चाहती थी कि, चीख-चीख कर सबको बता सके कि वह नौकरी अपने मजे के लिए नहीं बल्कि मजबूरी में कर रही है।कभी-कभी तो लगता था कि,क्यों वो इतने ताने और बातें सुनती रहें? सिर्फ इसलिए की वो मोहित को खुद की ही नज़रों में गिराना नहीं चाहती थी?

हकीकत दरअसल ये थी कि मोहित, दो साल से बहुत ही मामूली सी नौकरी कर रहा था, उसकी लापरवाही और आलस की वजह से कहो या रिसेशन की वजह से, उसकी अच्छी खासी नौकरी से वो हाथ धो बैठा था। जब सेलरी अच्छी थी,तो उसने किश्तों पर कार और फ्लेट भी खरीद लिया था।अब उसकी पूरी की पूरी तनख़ा ईएमआई भरने में ही खत्म हो जाती थी। उधर सीमा अपनी कड़ी मेहनत और लगन की वजह से आगे ही बढ़ती चली गई।

पहले तो मां के साथ-साथ, मोहित भी उसके नौकरी करने के खिलाफ था, मगर अब उसे ये अहसास तो था कि सीमा का काम करना कितना जरूरी हैं,पर कभी जाहिर नहीं होने देता था।बल्कि अपनी हरकतों और एंठ से, सीमा को एहसास दिलाता रहता था कि वो कम नहीं हैं। सीमा भी मोहित से बेहद प्रेम करती थी,सो सब समझते हुए भी अनजान बनीं रहती थी।

पर अब ये आए दिन की कहानी हो गई थी।एक तरफ सीमा के नौकरी करने का गम तो दूसरी ओर पोते-पोती की हसरत की वजह से रोहिणी जी का बढ़ता गुस्सा,उस पर मोहित की बढ़ती अकड़ और लापरवाही, अब सीमा की सहनशक्ति के बाहर की बात हो रही थी।

घर और दफ्तर के काम, बढ़ता मानसिक तनाव और आए दिन की ये बातें,अब सीमा का सब्र भी जवाब दे रहा था।उस पर बच्चों की हसरत,क्या उसका मन नहीं करता था कि उसके आंगन में भी किलकारी गूंजे,या तोतली जुबान से कोई उसे मां कह कर बुलाए, पर बच्चों की बात सुनकर तो मोहित ऐसे बिदकता था कि पुछो मत, उसे पता जो था कि सीमा यदि बच्चों के चक्कर में घर पर बैठ गई तो क्या होगा?

तो जब मां जी, बच्चों की बात पर उसे ताना मारती हैं तो मोहित चुप क्यों रहता हैं? मां जी उसे नौकरी का ताना मारती हैं,तब भी वो कुछ नहीं कहता, अड़ोस-पड़ोस का, फालतू रिश्तेदारों का,और निकम्मी सहेलियों का हवाला देकर उसे दो बातें सुनाती है,तब भी चुप रहता हैं। क्या दिन भर की थकी हारी वो घर पर आकर भी दो पल सुकुन के नहीं बिता सकती?क्या मोहित सब-कुछ जानते या समझते हुए भी अपना झूठा मेल इगो साईड में रख कर,बजाय उसके काम बढ़ाने के, उसकी सहायता नहीं कर सकता? मां जी को समझा नहीं सकता?

बस अब बहुत हो गया, अब उसे खुद की मानसिक शांति के लिए कोई ना कोई निर्णय लेना जरूरी ही था। फिर क्या था,वो सुलझी और समझदार थी, सो एक अच्छा सा निर्णय लेकर, एक नई सुबह की उम्मीद लेकर, चैन की नींद सो गई।