सुबह का नजारा

सुबह के खुबसूरत पलको यहां चित्रीत किया है।

सुबह का नजारा...
रोज की तरह आज भी सुबह पंछीयोंकी महफ़िल सजी थी।मैं भी उसमें शामील हो गई। मुझे तो पंछीयो के जैसा गाना नहीं आता पर गाना सुनने का तजुर्बा है। तानसेन नहीं हूं कानसेन ज़रूर हूं। हरेक डाल पंछीयोसे सजी थी।सभी अपनी अपनी आवाज में महफ़िल की शान बढ़ा रहे थे। सुबह की ठंडी हवा के साथ साथ उभरता कलाकार सूरज अपने रंगसे पुरे आसमान में फ़ैल गया। पेड़ पौधें अपनी डाली हवा में उछालकर न्रीत्य कर रही थी।चलती हवासे पेड़ पौधों के हरे सुखे पत्तोसे अलग अलग आवाज आरही थी।इतना लुभावना द्रीष्य था की मुझे चहकते हुये पंछी और सुरज से बातें करने का मन कर रहा था। पर पंछी और सुरज अपने काम में इतने व्यस्त थे की मेरी चाह मैं चाहकर भी पुरी नही कर पाई। थोड़ी देर में पंछी इधर उधर खाने का इंतजाम करने में जुट गये और सूरज ..वह तो धीरे-धीरे अपनी दाहक रूपको दुनीयाके सामने ला रहा था।उसका ये रूप मुझे सहेन नहीं हुआं।मैं शांती से अपनी दुनीयामे व्यस्त हो गयी।

स्रिष्टीके इन लोगों से मिलना मुझे अच्छा लगता है।सकारात्मक ऊर्जा उनसे मिलती है जो मुझे इन्सानी जगत में डटके खड़े रहने का साहस दिलाती है। हमारी इन्सानी जगत के तौरतरिके बहुतही अलग है।इस स्रिष्टीके तरह मासूमियत हमारी जगत में नही है।जो मासूमियत है वह छोटे बच्चोंकी दुनियामे है।और अबभी सलामत है।ए भगवान इस मासूमियतको व्यवहारी मत बनाओ।व्यवहार के आड हम बडे लोग सच,प्रेम, इन्सानियत सबको तराजू मे तोलकर देखते हैं। जो ऊपयोगी है ऊसीको अपने पास रखते है। मुझे ऐसी जिंदगी मंजूर नही।जीवनके हर पलको खुबसुरतीसे सजाना मुझे अच्छा लगता है।

जीवन के कितने पन्ने भगवान ने हमारे नाम लिखे है ये तो हम नही जानते।ऐसेमे हम हर एक पन्नेपर इन्सानियत के सुंदर लम्हों से भरदे तो कितना अच्छा लगेगा।खुशी ऐसी ढूंढी तो ही मिलती है।मन में बसे सब नकारात्मक लम्हों से आसानी से हम छुटकारा पा सकते हैं।हर रोजकी सुबह को नयी द्रिष्टीसे देखो।पंछीयोंका गाना फिर से दिल लगाकर सुनो। पेड़ पौधों को हवा से मस्त होकर झुमते हुये देखो।समझने की कोशीय करो उनकी आनंद का झरना हररोज नयी खुषीसे कैसा बहता है। ये सब हम हमारी जिंदगी में ला सकते हैं पर कैसे?

हमको इस स्रिष्टीको शरण जाना पड़ेगा।स्रिष्टीके कुछ नियम है। ऊसका हमें पालन करना होगा। आज-कल हम इन नियमों को टोडना ही भले भांती जानते हैं।इन नियमों को टोडनेके बाद कोनसा सैलाब आ सकता है इसकी फिक्र करने की जरूरत नहीं ऐसा हमें लगता है।परंतु आज हम नियम टोडनेका नतीजा भुगत रहे हैं। इन सबसे ख़ुदको बचाना है तो हमें इस स्रिष्टीको शरण जाना होगा। शरणागत व्यक्तियोंको वह झुठलाती नहीं बल्की उसे अपनी आंचलमे सुरक्षीत रखती है। ये मैं जान गयी हूं इसलिए हर सुबह मैं नये सिरे से अपने दिनकी शुरवात करती हूं।कलके नकारात्मक सूरोंके काले बादल उस पार फेंक देती हूं। मेरे इस आचरणसे स्रीष्टी मेरी मुठ्ठी में खुषीके बहुत-सारे लम्हे भर देती हैऔर मेरा मन खुषीसे बोल उठता है ...\"सुप्रभात।\"

लेखिका--- मीनाक्षी वैद्य