मीरा

संत मीरा मेरे नजरिये से


मीरा !!!!
-------------

मीरा_तुम_स्त्री_के_सशक्तीकरण_का_सशक्त_उदाहरण_हो।

मीरा तुम मुझे बेहद पंसद हो। इसलिये नहीं कि तुम कृष्ण भक्त हो। या तुम कृष्ण भक्ती की उच्चतम आयाम हो। तुम पसंद हो क्यूँकि स्त्री इतिहास में तुम एक सशक्त स्त्री हो।

तुम राणी थी और महलो की राजस्त्री थी। क्या नहीं था तुम्हारे पास। लेकीन जब महल ही सोने का पिंजरा बना तुम्हारे लिये। उस महल में, सांमती युग की मनमानी तुम्हे कभी गवारा नहीं थी। तुम्हें अपने गिरधर में आकाश था दिखता। तुम स्वाधीनता के स्वतंत्रता की दीवानी थी। तब हर बेडी को तोड दिया तुमने।

#मीरा_तुम_धर्म_युध्द_लढने_वाली_योध्दा_हो_मेरे_लिए

हा सच मेरी नजर में तुम योद्धा स्त्री हो। जो परंपराओं से भिड़ रही थी। कृष्ण नाम को हथियार बना लिया था तुमने। और उसी हथियार से धर्मो के ठेकेदारो से धर्म युद्ध तुम लड़ रही थी।

इसी हथियार से कीतने जुल्मो की कुरीतियों को तुमने तोडा।

पत्नी मरने के पच्छात पती दुसरा ब्याह कर सकता था। किंतु पत्नी विधवा बन जींदगी के नरक मे झुलस जाती थी। या सती बन जलाईं जाती थी कीतने पिढीयो से। यह जुल्म की कुरिति की तुमने ही सबसे पहले तोडा। भोज की चिता पे सती होना या उसका जोहार तुमने ठुकरा दिया। #कृष्ण_की_सुहागिन बन कर तुमने ही इस कुरिति को तोड़ा। पती निधन पच्छात भी सुहागिन बनी रही थी तुम।

इतना आसान नहीं था यह तुम्हारे लिए। कितनी बार पी लिया होगा तानों का जहर। फिर भी अमृत उगला तुमने। इसीलिए तुम #निलकंठ_शिव से कम नही हो।
समाज के जहरीले काटों की राह चलने में बहोत कठीन होती है। अकेली औरत पर लांछन के बिस्तर लग जाते है। लेकिन तुमने कृष्ण हथियार से हर बेडी तोडी।

समाज के लक्ष्मण रेखा को लांघकर तुमने हर बदनामी अपने आचल मे भर ली। जगनिंदा की परवाह किये बिन मीरा, तुम समाज के रावण की गलियारों चलती रही तुम सम में अनुठी हो।

#मीरा_तुम_तमाचा_थी_मर्द_बने_नारी_के_ठेकेदारो_पर

जब नारी घुंघट में कैद रहती थी। कीसी ना कीसी पुरूष अंकीत तब नारी प्रतीबध्द थी। तब तुमने चुनौती दी थी। तुम थी, एक कुलीन, एक राणी, एक बहु, एक स्वाधी, एक विधवा, इसके बावजूद
#पग_घुँघरू_बाँध_मीरा_नाची_थी। तुमने चुनौती दी थी। तुमने एक तमाचा मारा था। समाज के ठेकेदारो के मुंह पर। यह इतना आसान नहीं था।

#मीरा_तुम_ने_कृष्ण_हथियार_से_धर्म_पाखंड_को_तोडा

ईश्वर के नाम पर ठगने वालो की दिवारे तब दरदरा गयी जब तुमने कृष्ण को ही खरीद लाया। दान, मान, दक्षिणा से लुट रहे समाज मे जब झुमकर बोल गयी #मैने_खरीद_लियो_घनश्याम। ना सिक्के, ना दाम सिर्फ एक नाम पर तुमने ईश्वर को खरीद लेने की बात कहकर सच्ची भक्ति की निव रखी।

जात पात के निर्बंध को तब तहसनहस कर दिया जब रोहीदास चमार को अपना गुरू बना लिया तुमने। एक राजनंदनी के गुरू बन रहे रोहीदासजी को भी समाज भय लगा होगा। जब मांस के चमडे के छिंटे जब तुमपर पड गये, तब
#मीरा_भक्ती_सर_मे_डुब_गयी।

आज भी लोग मांस खाने वालो की हत्या कर देते है। तब तुमने उसी मांस के छींटो में भक्तिरस धुंड लिया। उच निच की दिवारे सब डह गयी। जब मिरा रोहीदासजी की शिष्या कहलायी।

मीरा तुम्हारे अभंग सिर्फ काव्यपंक्तीया नहीं है। बहोत कुछ छिपा है उनमें। तुम्हारे हर काव्य के छंदों में तुम्हारे पीड़ा नारी की दिखाई देती है।लोक लाज के चलते स्त्री ही तो स्त्री को छलती है। जली कटी सुनाने वाली स्त्रीही तो होती है। कभी सास, ननद, या भौजाई के रूपमें। देवर राणा ने बार बार मौत भिजवाई उसको भी पी कर झुमने वाली मीरा तुम सहनशीलता का अध्याय हो। यह सब तुम्हारे काव्य में छलकता है।

एक स्त्री उसमे कुलीनता की बेडी, और वैध्यव्य का श्राप होकर भी तुम समाज से लड रही थी।

#मीरा_तुम्हारे_जगह_यदि_कोई_पुरूष_होता_तो

क्या महात्मा गौतम स्त्री होते तो.. बुद्ध बन पाते.?
क्या महात्मा मुहम्मद स्त्री होते तो.. पैगंबर बन पाते.?
क्या महात्मा ईसा स्त्री होते तो.. जिजस बन पाते.?
शंकराचार्य भी महात्मा बन पाये क्योंकी वो पुरूष थे

कितने ही महात्मा अपनी पुरूषता की उपलब्धि के कारण उद्देश्य मे सरल चल सके। यदि वह स्त्री होते तो इतना सरल होता उनके लिये.?

कितने ही महात्मा अपनी पुरूषता की उपलब्धि के कारण उद्देश्य मे सरल चल सके। यदि वह स्त्री होते तो इतना सरल होता उनके लिये।

तुम सच में बंडखोरी की मीसाल हो
कुलिन स्त्री को घर त्यागना आसान नहीं था। वह तो सिर्फ सन्यासी पुरूषों की मक्तेदारी थी।
एक विधवा को प्रेम व्यक्त करना भी निषेध था। और तुम तो कान्हा की प्रेमिका बन बैठी। झुम उठी, नाच उठी बैनर बन पग घुंगरू बाध के।

पुरातन काल से स्त्री दुय्यम ही थी। भक्ति  की राह में भी  समानता कहाँ थी। वहाँ भी स्त्री का स्थान न था कोई।
#वृंदावन_में_कृष्ण_सिवा_कोई_पुरूष_नहीं
कहकर तुमने स्त्री उपेक्षा करने वाले पुरूषी अहंकार को लज्जित कर दिया।
इसिलिये तुम्हारी भक्ती आस्था के उस पार थी मीरा। इसी आस्था के बलबूते पर तुमने कृष्ण खरीदने की हीम्मत दिखाई।

कृष्ण खरीद कर तुम स्वयं कृष्ण बनी। तुम स्वयं मीरा बनी। न सती, न विधवा, न रानी, न नारी कुलीन, इससे उपर उठकर मीरा बनी। स्त्री अस्तित्व हेतू उठने वाले अस्त्र विलीन हो गये तुम्हारे सामने।



लेकीन इस समाज ने तुम्हारा परीचय ही बदल डाला। इतिहास ने धुमिल कर दी तुम्हारी कहानी। आगे की पीढी को बस यहीं जताया। कि मीरा तो केवल कृष्ण दीवानी थी। और पिढीयो ने भी सिर्फ तुम्हारे काव्य में पढ़ा कृष्ण का विरह। किंतु उसके पिछे की नारी वेदना दफन हो गयी। दबा दिया तुम्हारा विद्रोह। अनसुना कर दिया एक नारी का विरोध। और सुनी सिर्फ़ कृष्ण वंदना

मीरा !!! तुम मुझे बेहद पंसद हो। इसलिये नहीं कि तुम कृष्ण भक्त हो। पसंद हो क्यूँकि स्त्री इतिहास में
तुम एक सशक्त स्त्री हो।