कान्हा, तुम कितने रंग दिखाते हो,
मोहिनी मुस्कान से सबको दिवाना बनाते हो।
मोर मुकुट धारी, हे कृष्ण मुरारी,
मनोहर हरी,छबी सुंदर तुम्हारी,
सांवरी सुरत से,सबका मन हर्षाते हो,
कान्हा, तुम कितने रंग दिखाते हो।
देवकीनन्दन, हे बाल गोपाल,
यशोदा प्रिय, तुम नंदलाल,
माखन चुराकर सबको सताते हो,
कान्हा, तुम कितने रंग दिखाते हो।
ग्वाल बाल प्रिय,हे केशव सुंदर,
गिरधर माधव,हे कृष्ण दामोदर,
मटकी को फोड़ कर, गोपियों को सताते हो,
कान्हा, तुम कितने रंग दिखाते हो।
राधे गोविन्द,हे श्याम सुदर्शन,
श्रीधर माधवन,हे गोपिका नंदन,
बंसी की धुन पर रास रचाते हो,
कान्हा, तुम कितने रंग दिखाते हो।
द्रोपदी सखा,हे लीलाधर,
अच्युत कर्मयोगी,हे चक्रधर,
धर्म और कर्म का महत्व समझाते हो,
कान्हा, तुम कितने रंग दिखाते हो,
मोहिनी मुस्कान से सबको दिवाना बनाते हो।।
अंत में-
गीता का सार तुम्हीं से,जल, थल, नभ और संसार तुम्हीं से,
सबको आनंद देने वाले हे कृष्ण,जीवन का उद्धार तुम्हीं से।।