मानवा!

मानवा!

मानवा, मानवा | काय तुझी वृत्ती!|
सत्तेची आसक्ती | अनावर || १ ||

सत्तेचे हे भूत | तुझ्या डोईवर |
राज्य जगावर | इच्छितसे || २ ||

शेजारी ते देश | युद्धास पेटती |
निर्वासित होती | स्थानिक ते || ३ ||

कशाला रे होळी | रुधिर-मांसाची |
माया सगळ्यांची | संपुष्टात || ४ ||

किती हा विनाश | किती जगी ऱ्हास |
काय तुझी आस | अमानवी || ५ ||

गुन्हा हा कोणाचा | शिक्षा ही कोणास |
निर्दोषींना त्रास | लालसेचा || ६ ||

सैनिक लढती | प्राण घेती हाती |
निधडी जी छाती | घायाळ ती || ७ ||

सैनिक शहीद | कर्तव्य तत्पर |
बर्फाची चादर | रक्ताळली || ८ ||

वृद्ध मायबापा | लोचनीचा तारा |
तोच रे सहारा | चिमण्यांस || ९ ||

कोणाचा आधार | कोवळ्या जीवांस |
पत्नीच्या मनास | आक्रंदिता || १० ||

असा कसा जाई | सोडुनिया साथ |
शूर माझा नाथ | हिरावला || ११ ||

शौर्यपदक ते | स्वीकारते पत्नी |
ओघळ लोचनी | आर्ततेचे || १२ ||

अभिमान त्याचा | खास आहे तिज |
प्रश्न मात्र आज | जगण्याचा || १३ ||

देशासाठी तिचे | त्यागाचे आंदण |
केले समर्पण | सौभाग्याचे || १४ ||

बंदुकीची गोळी | जीवनाची होळी |
फाटलीसे झोळी | सत्कर्माची || १५ ||

युद्ध-परिणाम | दुःखे ती पिढ्यांची |
सृष्टीची, मनाची | होरपळ || १६ ||

जैविक ते युद्ध | प्रयोगशाळेत |
विषाणू निर्मित | जीवऱ्हास || १७ ||

देवाचेच रूप | वैद्यास मानती |
काही मात्र नीती | विस्मरती || १८ ||

महामारी विश्वी | धंदे टाळेबंदी |
अपेष्टांची नांदी | सामान्यांच्या || १९ ||

साधन संपत्ती | उधळता खूप |
दुर्भिक्ष्यस्वरूप | ओढवते || २० ||

मानवा मानवा | कसा तुझा खेळ?|
निसर्गाशी मेळ | बिघडवी || २१ ||

सर्व सुरळीत | का नको तुज |
विनाश हा का रे | मनी येतो? || २२ ||

भातुकली इवली | उधळून देशी |
खुडून का घेशी | सान कळ्या?|| २३ ||

वृद्ध मायबापा | दावी वृद्धाश्रम |
कष्ट, त्याग, प्रेम | विस्मरून || २४ ||

करिता केवळ | स्वतःचा विचार |
बोथट ती धार | जाणिवेची || २५ ||

ठेवता जाणीव | इतरांची थोडी |
जगण्याची गोडी | वृद्धिंगत || २६ ||

स्व-भार्याच, बाकी | माता नि भगिनी |
संयम पालनी | पौरुषत्व || २७ ||

मूल्यांच्या गर्तेत | चाललासे तू रे |
शांततेचे वारे | वाहू दे ना || २८ ||

प्रेमे सोडवावा | प्रश्न अस्तित्वाचा |
मार्ग हा तत्त्वाचा | समत्वाचा || २९ ||

जगा नि जगू द्या | संतांचे वचन |
तया आचरण | करितसे || ३० ||

विश्वी सर्व सुखी | असा कोण आहे?|
संतोषामृत हे | प्राशितसे || ३१ ||

मानवता ध्येय | दृष्टीत पावित्र्य |
मनाचे मांगल्य | नित्य ठेवी || ३२ ||

आनंदे जगावे | आयुष्याचे क्षण |
सर्वांचे कल्याण | चिंतोनिया || ३३ ||


© स्वाती अमोल मुधोळकर

*साहित्यचोरी हा गुन्हा आहे *