मंजूर हो तुम

बस उन्हीं
हां, मंजूर हो तुम
उन गुलाब के फूल की तरह
चाहे जितना खूबसूरत क्यू न हो, कांटे तो सेहने ही पडते हैं!

हां, मंजूर हो तुम
उस कमल के फूल की तरह
चाहे किचड मे ही क्यू न खिला हो, फिर भी पवित्र माने जाते हैं!

हां, मंजूर हो तुम
उस निम के पत्तो की तरह
चाहे जितना भी कडवा हो, लेकीन दर्द पर मरहम का काम करता हैं!

हा, मंजूर हो तुम
उस रातरानी के फूल की तरह
चाहे कितना भी सुहाना दिन हो, लेकीन वो खुशबू रात को ही बिखेरती हैं!

हां, मंजूर हो तुम
उस गुलदस्ते की तरह
चाहे कुडे मे क्यू न पडा हो, वो अपनी खुबसूरती बयां करता हैं!

हां, मंजूर हो तुम
उस तुलसी के पौधे की तरह
चाहे आंगन में क्यू न रखा हो, अपने नैतिक गुनों से घर मे सकारात्मक ऊर्जा लाता हैं!

हां, मंजूर हो तुम
उस हरसिंगार की तरह
चाहे कृष्ण को पसंद हो इसलिये लागाया गया, लेकिन अब प्यार का प्रतिक कहलाता हैं!

हां, मंजूर हो तुम
उस कमीज पर लगे इत्र की तरह
जो खुदका वजूत मिटाकर भी अपनी खुशबू से जन्नत दिखाता हैं!