विषय - अधूरा ख़्वाब
(शीर्षक - कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।)
लेखिका- स्वाती बालूरकर, सखी
(शीर्षक - कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।)
लेखिका- स्वाती बालूरकर, सखी
क्षमा ने अपनी डायरी खोली और अपने मन की बात लिखने लगी….वह ऐसे सोच रही थी जैसे अपना कन्फेशन लिख रही हो… यही एक जगह थी जहां वह खुलकर अपने आप को व्यक्त करती थी। कई बार तो वह खुद को जानने के लिए अपने ही लिखे हुए पुराने पन्ने पढ़ती थी, फिर उसे लगता क्या सचमुच में ऐसी हूं? मैं क्या चाहती हूं?मैं अपने बारे में क्या जानती हूं?
उसने पेन तो हाथ में लिया, डायरी भी खोली परंतु रुक गई, पता नहीं है लिखना क्या है? या यह सब कैसे लिखना है?
उसे लगा की वास्तविक रूप में इस समय वह ऋषभ से बात करना चाहती थी पर शायद यह सब कुछ उसके सामने बोल नहीं पाएगी। शायद वह कमजोर पड़ जाएगी। हो सकता है, अगर वह फोन पर बात करेगी तो हिम्मत से हर चीज बोल पाएगी। परंतु उसे सुनते समय ऋषभ के चेहरे के भाव वह देखना चाहेगी, उसे सुनकर क्या लग रहा है? उसकी क्या प्रतिक्रिया है? उसे समझ नहीं आता था, उनका रिश्ता, यह सब क्या पहेली है? या जैसे फिल्मों में कहते हैं, यह सचमुच कोई केमिकल लोचा है।
डायरी को ही इस समय सामने बैठा ऋषभ समझकर क्षमा पेन चलाने लगी. . .
डायरी को ही इस समय सामने बैठा ऋषभ समझकर क्षमा पेन चलाने लगी. . .
“सुनो ना ऋषभ, यह क्या अजीब फीलिंग है, मैं शायद तुम्हारे साथ रहना चाहती थी . . यह मैंने तुमसे बिछड़ने के बाद जाना! वैसे मैं तुमसे क्यों अलग हुई? क्या कारण था? शायद मैं तुमको नहीं चाहती थी, या यूं कहो कि मैं तुम्हें उसे दृष्टिकोण से नहीं देखती थी ।फिर भी मुझे तुमसे दूर होकर छुटकारे का एहसास चाहिए था । ऐसा क्यों लग रहा है कि बहुत कुछ पीछे छूट गया है? कोई कमी या कोई खालीपन आ गया है जिंदगी में ,लग रहा है ऐसी कोई चीज गुम हो गई हो जो मेरी अपनी थी।
पिछले कुछ दिनों से तुमसे पीछा छुड़ाना मेरा महत्वपूर्ण लक्ष्य बन गया था,फिर आज क्यों मुझे पीछा छूटने का सुकून नहीं है?
पिछले कुछ दिनों से तुमसे पीछा छुड़ाना मेरा महत्वपूर्ण लक्ष्य बन गया था,फिर आज क्यों मुझे पीछा छूटने का सुकून नहीं है?
मैं खुद ही समझ नहीं पा रही हूं कि अगर तुमसे मिलना मुझे पसंद नहीं था तो-
तुम्हारे बुलाने पर मैं क्यों ना ना कहते हुए भी तुमसे मिलने आ जाती थी? क्या वह सच था जो तुम समझ रहे थे ?या जो मैं अपने आप को समझा रही थी?
तुम्हारे बुलाने पर मैं क्यों ना ना कहते हुए भी तुमसे मिलने आ जाती थी? क्या वह सच था जो तुम समझ रहे थे ?या जो मैं अपने आप को समझा रही थी?
ऋषभ, तुम शायद सही थे।”
क्षमा जैसे पिछले दिनों की कुछ घटनाएं फिर से देखने लग गई, जैसे कोई चलचित्र चल रहा हो, अपना ही जीवन वह स्वयं फिल्म जैसा देख रही हो -
ऋषभ बार-बार कहता “क्यों अपने आप को धोखा दे रही हो?”
और वह कहती रही,”नहीं मेरे मन में ऐसा- वैसा कुछ नहीं है!”
पर असल में जब ऋषभ का फोन आता तो वह चिढ़ जाती, कभी इरिटेट हो जाती और जब फोन नहीं आता तो बेचैन हो जाती। उसके साथ कई बार चैटिंग चलती रहती थी लेकिन वह चाहती कि अब वह कोई मैसेज ना भेजे. . . यह क्या था?
अब कल से एक दिन में, केवल 24 घंटे में जब ऋषभ का कोई कॉल नहीं आया या कोई भी मैसेज नहीं आया तब भी वह उसके कॉल का इंतजार कर रही थी।
हर मिनट नजर मोबाइल पर थी, दुनिया भर के कॉल्स और मैसेज आ रहे थे पर उसका नाम फोन में देखने की हसरत मन में कहीं दबी थी। अगर आज वह फोन करता तो शायद वह कहती ' क्या हुआ? मैंने कहा था ना फोन मत करो, अब क्यों तुमने किया मैसेज?'
लेकिन उसने मौका ही नहीं दिया कि उसके नियम तोड़ने पर या उसकी बदतमीजी पर क्षमा उसे डांट दे! अब वह क्या करेगी?
वह सोच में पड़ी थी, 'यह इंतजार, यह बेचैनी,यह तकरार, वही उसका ख्याल, यह सब क्या है ऋषभ? क्या यह प्यार है? '
और वह कहती रही,”नहीं मेरे मन में ऐसा- वैसा कुछ नहीं है!”
पर असल में जब ऋषभ का फोन आता तो वह चिढ़ जाती, कभी इरिटेट हो जाती और जब फोन नहीं आता तो बेचैन हो जाती। उसके साथ कई बार चैटिंग चलती रहती थी लेकिन वह चाहती कि अब वह कोई मैसेज ना भेजे. . . यह क्या था?
अब कल से एक दिन में, केवल 24 घंटे में जब ऋषभ का कोई कॉल नहीं आया या कोई भी मैसेज नहीं आया तब भी वह उसके कॉल का इंतजार कर रही थी।
हर मिनट नजर मोबाइल पर थी, दुनिया भर के कॉल्स और मैसेज आ रहे थे पर उसका नाम फोन में देखने की हसरत मन में कहीं दबी थी। अगर आज वह फोन करता तो शायद वह कहती ' क्या हुआ? मैंने कहा था ना फोन मत करो, अब क्यों तुमने किया मैसेज?'
लेकिन उसने मौका ही नहीं दिया कि उसके नियम तोड़ने पर या उसकी बदतमीजी पर क्षमा उसे डांट दे! अब वह क्या करेगी?
वह सोच में पड़ी थी, 'यह इंतजार, यह बेचैनी,यह तकरार, वही उसका ख्याल, यह सब क्या है ऋषभ? क्या यह प्यार है? '
क्षमा अपनी धारणा में बड़ी स्पष्ट थी, कि वह रोहन के बाद किसी से प्यार नहीं करती, ऋषभ से तो बिल्कुल नहीं। हां, वह उसका दोस्त हो सकता है, करीबी दोस्त, सच्चा और अच्छा दोस्त ! पर क्या दोस्ती और प्यार की सीमा रेखा इतनी धुंधली है कि उसका मन दोस्त से मिलकर आने पर तृप्त होता है? फिर कुछ दिन वे बात भी नहीं करते तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर उससे मिलकर आने पर हर बार मन वहीं रह जाता था, उसके साथ।
फिर हर बार क्षमा के घर लौटने पर वह फोन करता था , फिर वे लंबी बातें करते , कि उस मुलाकात में क्या हुआ था।
क्या ऋषभ का कहना सही था? क्या यह प्यार के लक्षण थे?
कल जब ऋषभ ने फोन किया था,” क्षमा, तुमसे मिलना है!”
इस बार क्षमा ने भी कहा था,” हां, मुझे भी तुमसे मिलना है।”
“अरे वाह, हमारी तो किस्मत जग गई, जो मैडम हमसे मिलना चाहती है।”
“हां, इतने खुश मत हो। मैं मिलना चाहती हूं ताकि फिर तुमसे मिलने की नौबत ना आए!”
“ अच्छा, कहीं मेरा खून करने का इरादा तो नहीं? ठीक है मिल लो। तुम पर जो मर मिटा है उसे तुम क्या मारोगी? चलो ऐसे ही सही , मिल तो लो जान, तुम्हें तो मेरा खून भी माफ।” वह आशिकाना मूड में बोल रहा था।
फिर हर बार क्षमा के घर लौटने पर वह फोन करता था , फिर वे लंबी बातें करते , कि उस मुलाकात में क्या हुआ था।
क्या ऋषभ का कहना सही था? क्या यह प्यार के लक्षण थे?
कल जब ऋषभ ने फोन किया था,” क्षमा, तुमसे मिलना है!”
इस बार क्षमा ने भी कहा था,” हां, मुझे भी तुमसे मिलना है।”
“अरे वाह, हमारी तो किस्मत जग गई, जो मैडम हमसे मिलना चाहती है।”
“हां, इतने खुश मत हो। मैं मिलना चाहती हूं ताकि फिर तुमसे मिलने की नौबत ना आए!”
“ अच्छा, कहीं मेरा खून करने का इरादा तो नहीं? ठीक है मिल लो। तुम पर जो मर मिटा है उसे तुम क्या मारोगी? चलो ऐसे ही सही , मिल तो लो जान, तुम्हें तो मेरा खून भी माफ।” वह आशिकाना मूड में बोल रहा था।
“ ऋषभ, बेकार की बातें मत करो, मुझे तुमसे जरुरी बात करनी है। “
“हां, तुम्हें तो हमेशा ही जरूरी बात करनी होती है। पता है वो जरूरी बात , फोन मत करो, मैसेज मत करो, हम मिलेंगे नहीं, यह सब गलत है वगैरा वगैरा। मुझे समझ नहीं आता कि दुनिया में सब कुछ ठीक है, बस हमारा मिलना ही गलत है। हमारे मिलने में जो सही है, कभी तो वो देखा करो यार!”
“ मिलते हैं!”
“ ठीक है, क्षमा , शाम 5:00 बजे तैयार रहना, मैं आ रहा हूं।”
“ ठीक है, क्षमा , शाम 5:00 बजे तैयार रहना, मैं आ रहा हूं।”
और किसी रोबोट की भांति ना चाहते हुए भी यांत्रिक रूप से ही सही, वह तैयार हो गई। वह खुद से पूछ रही थी कि ' अगर मैं उसे पसंद नहीं करती, उसे इस तरह अकेले में मिलना गलत मानती थी, तो मैंने इंकार क्यों नहीं किया? मैं अपने इरादे पर बड़ी पक्की थी, मुझे यह संबंध बनने नहीं देना था क्योंकि मुझे लग रहा था कि शायद मैं इस तरह अपने आप चक्रव्यूह में फंस जाती, बातें बढ़ जाती तो फिर निकलना मुश्किल हो जाएगा और बने रहना भी शायद ठीक नहीं रहता, यह सोचकर तो मैं आज मिलने को तैयार हुई थी।'
शायद आज क्षमा बहुत रिलैक्स थी, उससे मिलने जा रही थी और बुद्धि को बता रही थी कि यह आखरी बार है यह उसे पता था शायद ऋषभ को नहीं। वह तो अपनी धुन में प्लान कर रहा था कि कहां मिलेंगे,कहां खाएंगे,कहां जाएंगे,कितनी देर साथ रहेंगे? वगैरा-वगैरा।
उसकी गाड़ी आई और दोनों साथ बैठे, क्षमा के चेहरे पर इतनी औपचारिक मुस्कुराहट देखकर वह बोला ,”क्या है जानू, इतने दिन मर मर कर जी रहे हैं, हंसना है तो मुझे देखकर दिल खोल कर हंसना, उसमें भी कंजूसी क्यों? हंसने के तो पैसे नहीं लगते।”
क्षमा शायद तब भी खुलकर हंस नहीं पाई थी। वह खुश थी कि उदास थी पता नहीं चल रहा था। पर दोनों के बीच बड़ी शांति थी। ऋषभ का ध्यान कार चलाने में कम और क्षमा को देखने में ज्यादा था।
“बड़ी सीरियस हो पर हां, कितनी स्मार्ट लग रही हो।”
“इंपॉर्टेंट बात करने जो आई हूं।”
“हां तो करो ! पर नहीं रुको, अब नहीं, लौट कर जाते समय। अभी इस समय वो बात कर के मेरी यह मुलाकात खराब मत करो। तुम्हें नहीं पता मैं कितनी जतन से तुमसे मिलता हूं। तुमसे मिलकर कितना सुकून पाता हूं। इतना तड़पता हूं एक मुलाकात के लिए। लगता है कि तुम मेरे बगल में बैठो और मैं तुम्हें देखता रहूं।” वह बोला।
“बड़ी सीरियस हो पर हां, कितनी स्मार्ट लग रही हो।”
“इंपॉर्टेंट बात करने जो आई हूं।”
“हां तो करो ! पर नहीं रुको, अब नहीं, लौट कर जाते समय। अभी इस समय वो बात कर के मेरी यह मुलाकात खराब मत करो। तुम्हें नहीं पता मैं कितनी जतन से तुमसे मिलता हूं। तुमसे मिलकर कितना सुकून पाता हूं। इतना तड़पता हूं एक मुलाकात के लिए। लगता है कि तुम मेरे बगल में बैठो और मैं तुम्हें देखता रहूं।” वह बोला।
क्षमा खामोश थी, अपनी भावनाएं प्रकट करने के लिए मन में शब्द जोड़ रही थी। वह कितना भोला लग रहा था, उसके विचारों से अनभिज्ञ।
क्षमा फिर सोच में पड़ी,”कितना चाहते थे तुम मुझे, अक्सर बताते रहते हो , जताते रहते हो, मेरे लिए क्या-क्या करने को तैयार होते हो। मैं हर बार रोक देती हूं। मुझे यह बातें बोझ लगती है। आज तुम खास मेरे लिए गजल की सीडी लाए थे जो चल रही थी। कितनी सही पंक्तियाँ थीं
“कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,
तेरे जहां में ऐसा नहीं की प्यार ना हो
जहां उम्मीद हो इसकी वहां नहीं मिलता”
यह तो मेरे जीवन की फिलॉसफी बन गई है। क्षमा सोच में पड़ गई, ' रोहन से मैं अलग हुई लेकिन आज भी मेरे मन में मेरे रोम रोम में वो बसा हुआ है।उसकी यादों में तो मेरा यह जन्म ऐसे ही निकल जाएगा।
हमारे तलाक को 2 साल बीते और वह अभी भी मेरे अंदर बसा हुआ है। उसके लिए वह जो तड़प मुझमें थी, वह जुनून मुझे था, पागलपन था, वह फिर किसी के लिए नहीं उपजा। रोहनने शायद इस जन्म में मेरी कदर नहीं जानी और ऋषभ तुम पागल प्रेमी, अगले जन्म तक मेरा इंतजार करने के लिए तैयार हो। यह कितनी एक्सट्रीम बात है। “
क्षमा फिर सोच में पड़ी,”कितना चाहते थे तुम मुझे, अक्सर बताते रहते हो , जताते रहते हो, मेरे लिए क्या-क्या करने को तैयार होते हो। मैं हर बार रोक देती हूं। मुझे यह बातें बोझ लगती है। आज तुम खास मेरे लिए गजल की सीडी लाए थे जो चल रही थी। कितनी सही पंक्तियाँ थीं
“कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,
तेरे जहां में ऐसा नहीं की प्यार ना हो
जहां उम्मीद हो इसकी वहां नहीं मिलता”
यह तो मेरे जीवन की फिलॉसफी बन गई है। क्षमा सोच में पड़ गई, ' रोहन से मैं अलग हुई लेकिन आज भी मेरे मन में मेरे रोम रोम में वो बसा हुआ है।उसकी यादों में तो मेरा यह जन्म ऐसे ही निकल जाएगा।
हमारे तलाक को 2 साल बीते और वह अभी भी मेरे अंदर बसा हुआ है। उसके लिए वह जो तड़प मुझमें थी, वह जुनून मुझे था, पागलपन था, वह फिर किसी के लिए नहीं उपजा। रोहनने शायद इस जन्म में मेरी कदर नहीं जानी और ऋषभ तुम पागल प्रेमी, अगले जन्म तक मेरा इंतजार करने के लिए तैयार हो। यह कितनी एक्सट्रीम बात है। “
पर आज पता नहीं क्षमा के अंदर कैसे बेचैनी थी, वह भी वैसे तो बड़े सुकून में थी। वे दोनों लंबे ड्राइव पर जा रहे थे। वह खामोश थी और ऋषभ बोले जा रहा था, बैकग्राउंड पर जगजीत सिंह की एक से एक बढ़िया ग़ज़लें चल रही थी।
जिस समय गाड़ी धीमी हुई , ऋषभ ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर चुम्मा था, वह कुछ नहीं बोली। फिर उसने कंधे पर हाथ रखा, क्षमा ने पिछली बार की तरह झटका भी नहीं । वह मन से कहीं दूर उस पार निकल गई थी। आत्मा, अंतरात्मा, परमात्मा आदि के ख्यालों में! उस समय यह शरीर उसे एक खिलौने जैसा या कठपुतली जैसा लगने लगा था, जिसके पीछे ऋषभ दीवाना था।
पर शायद उसकी खामोशी को उसने कुछ और समझ लिया ! क्षमा का विरोध न करना वह उसकी सहमति समझेगा और उसकी मांगे बढ़ेंगी। क्षमा को अब शारिरिक नजदीकियों में रत्ती भर भी इंटरेस्ट नहीं था क्योंकि वह कशिश या खिंचाव उसे केवल रोहन के लिए था और रहेगा, रोहन को ऐसा नहीं था यह वो साबित कर चुका था।
वैसे उन दोनों ने कितना अच्छा समय बिताया ऋषभ खुश था। जब आखिरी में बातचीत की बारी आई तो क्षमा ने कहा, “मुझे पांच दस मिनट दे दो।”
“जानू छोड़ो न, अब वह सब कहना जरूरी है क्या?” ऋषभने दर्द भरी आवाज में पूछा।
“जानू छोड़ो न, अब वह सब कहना जरूरी है क्या?” ऋषभने दर्द भरी आवाज में पूछा।
“जरूरी है, मेरे लिए। इसलिए तो मिलने आई थी।”
“ठीक है, अगली बार कर लेना।”
“ऋषभ बात समझो, मेरे लिए कोई अगली बार नहीं है! हम आज आखिरी बार मिल रहे हैं।”
“अच्छा तो कहो, सुन लेता हूं।”
“अब भी समझ जाओ ऋषभ, यह जो हम कर रहे हैं,यह ठीक नहीं है।”
“अच्छा! आज क्या नया कह रही हो? यह तो पहले दिन से कहती आई हो, सब सही है, कुछ भी गलत नहीं होता। यह हमारे नज़रिए पर डिपेंड करता है।”
“तो समझ लो कि मेरा नजरिया अलग है, जिंदगी की और देखने का और जिंदगी जीने का भी। हम फिर नहीं मिलेंगे ऋषभ, यह हमारी आखिरी मुलाकात है।”
ऋषभ उसके उस कड़े स्वर से परेशान हो गया था, “ऐसा क्या हुआ मेरी जान कि तुम आज मेरी जान लेने पर तुली हुई हो ? क्या मुझसे कोई गलती हुई? ठीक है, बता दो। अगली बार ऐसा नहीं होगा। पर ऐसी पत्थर दिल ना बनो। यह सब बेकार की सोच दिमाग में से निकाल दो ।दुनिया कहां जा रही है और तुम 100 साल पीछे।”
ऋषभ उसके उस कड़े स्वर से परेशान हो गया था, “ऐसा क्या हुआ मेरी जान कि तुम आज मेरी जान लेने पर तुली हुई हो ? क्या मुझसे कोई गलती हुई? ठीक है, बता दो। अगली बार ऐसा नहीं होगा। पर ऐसी पत्थर दिल ना बनो। यह सब बेकार की सोच दिमाग में से निकाल दो ।दुनिया कहां जा रही है और तुम 100 साल पीछे।”
“क्या बेकार की सोच?”
“ क्षमा जिंदगी बार - बार नहीं मिलती, जो है उसे खुशी से बिताओ।घुट घुट के क्यों जीती हो? तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि जब तुम खुश होती हो तो फ़रिश्ते जैसी लगती हो, और तुम्हें देखकर मैं इतना खुश होता हूं कि मेरा समय तो निकल पड़ता है।”
क्षमा फिर कमजोर पड़ने लगी।
“आज तो कहना ही है, सुनो ना ऋषभ, तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो। मेरी तरफ से तो दोस्त ही हो, भगवान को साक्षी मानकर कहती हूं कि उसके अलावा मेरे दिल में तुम्हारे लिए कोई फीलिंग नहीं है। पर तुम्हारी बात अलग है, तुम मुझे पागलों की तरह चाहने लगे हो। मैं तुम्हारी प्रेमिका वाली अपेक्षाएं पूरी नहीं कर सकती , इस बात की एक तकलीफ है मुझे। अगर तुम्हारी खुशी के लिए मैं तुम्हारे संग प्रेमिका जैसा व्यवहार करूं तो अपने ज़मीर में एक जबरदस्त अपराधी भावना आती है। समझ रहे हो मैं क्या कह रही हूं? ऋषभ , समाज के लिए, दुनिया के लिए नहीं, अपने आप से झूठ बोलने की फीलिंग शायद बर्दाश्त नहीं होती। जो नहीं है , वह नहीं है। सीधी बात, तुम दोस्त नहीं बन सकते, मैं प्रेमिका नहीं बन सकती। क्यों इस अपाहिज रिश्ते को और आगे बढ़ाना? समझ रहे हो ना, हम नहीं मिलेंगे।”। ऋषभ इन बातों से उदास हो गया , पर क्या करता?
“आज तो कहना ही है, सुनो ना ऋषभ, तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो। मेरी तरफ से तो दोस्त ही हो, भगवान को साक्षी मानकर कहती हूं कि उसके अलावा मेरे दिल में तुम्हारे लिए कोई फीलिंग नहीं है। पर तुम्हारी बात अलग है, तुम मुझे पागलों की तरह चाहने लगे हो। मैं तुम्हारी प्रेमिका वाली अपेक्षाएं पूरी नहीं कर सकती , इस बात की एक तकलीफ है मुझे। अगर तुम्हारी खुशी के लिए मैं तुम्हारे संग प्रेमिका जैसा व्यवहार करूं तो अपने ज़मीर में एक जबरदस्त अपराधी भावना आती है। समझ रहे हो मैं क्या कह रही हूं? ऋषभ , समाज के लिए, दुनिया के लिए नहीं, अपने आप से झूठ बोलने की फीलिंग शायद बर्दाश्त नहीं होती। जो नहीं है , वह नहीं है। सीधी बात, तुम दोस्त नहीं बन सकते, मैं प्रेमिका नहीं बन सकती। क्यों इस अपाहिज रिश्ते को और आगे बढ़ाना? समझ रहे हो ना, हम नहीं मिलेंगे।”। ऋषभ इन बातों से उदास हो गया , पर क्या करता?
“ ठीक है, फोन पर बात करो, कभी कभार।”
“नहीं।”
“क्षमा, मैसेज ?”
“बिल्कुल नहीं।”
“नहीं।”
“क्षमा, मैसेज ?”
“बिल्कुल नहीं।”
ऋषभ एक दम खामोश हो गया, कितनी देर खामोश रहा। फिर उसकी आंखों में गहराई से देख कर बोला,” तुम इतना सोचती हो यह पता नहीं था। ठीक है, तुम जैसा ठीक समझो। बस तुम खुश रहो। अपना मन मत मारो और हां , मैं. . .मैं हमेशा से तुम्हारे लिए हूं, किसी भी तरह के कोई भी प्रॉब्लम हो, कोई भी हेल्प चाहिए होगी,तो बताना। आई मीन आय एम देअर फॉर यू!”
उसने जोर दिया,
“आधी रात में भी तुम बुलाओगी , तो मैं हूं!”
उसने जोर दिया,
“आधी रात में भी तुम बुलाओगी , तो मैं हूं!”
क्षमा की आंखें छलछला गई , क्यों? उसे भी नहीं पता। उसने गाड़ी एक किनारे रोक दी।
उसकी हथेली को वह कितनी देर चूमता रहा, वह चेहरे की ओर आगे बढ़ा पर क्षमा की सजल आंखों को देख कर वह रुक गया । फिर उसने क्षमा के माथे को चूमा !
“बताओ कहां छोड़ू तुम्हें ?”
“वही मेरे घर के पास।”
एकदम सन्नाटा। दर्दनाक खामोशी। डायलॉग नहीं, गजल चलती रही।
' बन जाएंगे जहर पीते पीते,
ये अश्क जो पीती जा रही हो।'
ये अश्क जो पीती जा रही हो।'
वह मोड आ गया। क्षमा ने उससे हाथ छुड़ाया और सीधी चलने लगी, मुड़कर भी नहीं देखा। फिर बहुत दूर जाकर पलट कर देखा। ऋषभ वही कार को रोके खड़ा था, उसे देखते हुए। क्षमा के पलट कर देखते ही उसने कार घुमाई, पलट कर तेज गति से चला गया।
अब क्षमा घर पर आई तो मन में अजब बेचैनी थी क्योंकि जितनी बार भी वह उससे मिली थी, हर बार उससे मिलकर घर आते ही उसका फोनपर बात करना शुरू होता था । वैसे ही आदत जो पड़ गई थी पर आज कोई मैसेज नहीं, फोन नहीं।
अब क्षमा सोच में पड़ गई-
' हां, उसने मेरी प्रॉब्लम सचमुच समझ ली अच्छा है, पर आज मेरा मन रिलैक्स क्यों नहीं? मैंने गलत नहीं किया यह मैं अपने आपको अपने बुद्धि को बार-बार समझा रही हूं, खुद को भी समझाने की क्या जरूरत है? उसकी तरफ से सोचूं, शायद यह गलत है। मैं दोस्त बनकर मिली थी पर उसके प्यार को मैंने हंसते खेलते सुन लिया था पर सुना तो था। उसे विश्वास हो गया था कि मैं भी अपने मन से उसमें उलझ गई हूँ तो कुछ नया रिश्ता बनेगा।
चाहे वह यह भूल जाए पर मैं कैसे भूल सकती थी कि वह शादीशुदा था। यह बात उजागर होने पर उसके परिवार की पीड़ा मैं समझ सकती हूं क्योंकि मैं भी इस आग में जल कर झुलस रही हूं। अब नहीं बस यही सब खत्म।'
अब क्षमा सोच में पड़ गई-
' हां, उसने मेरी प्रॉब्लम सचमुच समझ ली अच्छा है, पर आज मेरा मन रिलैक्स क्यों नहीं? मैंने गलत नहीं किया यह मैं अपने आपको अपने बुद्धि को बार-बार समझा रही हूं, खुद को भी समझाने की क्या जरूरत है? उसकी तरफ से सोचूं, शायद यह गलत है। मैं दोस्त बनकर मिली थी पर उसके प्यार को मैंने हंसते खेलते सुन लिया था पर सुना तो था। उसे विश्वास हो गया था कि मैं भी अपने मन से उसमें उलझ गई हूँ तो कुछ नया रिश्ता बनेगा।
चाहे वह यह भूल जाए पर मैं कैसे भूल सकती थी कि वह शादीशुदा था। यह बात उजागर होने पर उसके परिवार की पीड़ा मैं समझ सकती हूं क्योंकि मैं भी इस आग में जल कर झुलस रही हूं। अब नहीं बस यही सब खत्म।'
क्षमा ने अपनी डायरी बंद कर दी, उसे लगा जैसे अपने ही लाइफ की फिल्म का एक ट्रेलर वह स्वयं देख कर आ रही है। कहीं कोई शांति नहीं, विचार में लीन वह शाम तक बेचैन रही।
हाथ में फोन था पर उससे कोई कम नहीं था।
हाथ में फोन था पर उससे कोई कम नहीं था।
रात में खाने के बाद तक तो क्षमा खुद को खूब अकेली समझने लगी जैसे कुछ कीमती वस्तु खो गई हो, जैसे दुनिया उजड़ गई हो। जरा भी फोन की रिंगटोन बजती तो वह समझती की ऋषभ का कॉल है। इस बार वह रोहन का था। आज वह इस हालत में न थी कि उससे हस खेल कर बातें करें जैसे वो अक्सर करती थी। इससे रोहन रिलैक्स होता था और खुदको समझाता कि उसने क्षमता के साथ कोई अन्याय नहीं किया था, क्षमा तो अभी भी खुश है। आज उनका बेटा अद्वैत गहरी नींद सो रहा था। जरूर रोहन ने बेटे से बात करने के लिए फोन नहीं किया था, बेटे से बात करनी होती तो वह दिन में कर लेता था, इतनी रात में क्यों करता ?
उसने जैसे तैसे बहाना करके रोहन से ज्यादा बात नहीं की । फोन काट दिया।
दूसरे दिन जब उनकी मुलाकात को चौबीस घंटे बीत गए थे, क्षमा बावली - सी हो गई थी।
उस समय क्षमा फोन में केवल ऋषभ का नाम देखना चाहती थी, मैसेज में या फोन कॉल पर सही।
' यह उसके आत्म अभिमान की अनुभूति तो नहीं कि मेरे विचार से उसे कुछ भी तकलीफ नहीं हुई वरना वह जरूर फोन करता है और जिस स्ट्रिक्टनेस से, कड़े सलीके से उसने मना किया था, समझाया था, कोई बंदा फिर क्यों फोन करेगा? क्या उसे अपना कोई आत्मसम्मान नहीं है? अब उसे यह बेचैनी हो गई थी । मन काबू में नहीं रहा। हाथों ने मस्तिष्क की बात नहीं सुनी वह मन की बातों में आ गया और उसके फोन से ऋषभ का नंबर डायल हुआ।
रिंग बजती रही, देर से ही सही पर फोन उठाया गया।
“जी सर, कहिए। घर पर हूं , पांच मिनट के बाद कॉल करता हूं।”
कॉल कट हो गया।
पांच मिनट बाद भी फोन नहीं आया। अब क्षमा धर्म संकट में थी की उसे क्या जवाब दिया जाए ? वजह बताने के लिए वह फिर कहाँ ही मिलेगा। पूछेगा अभी तो बता देते हैं कि बच्चे ने गलती से डायल किया था।
उसने जैसे तैसे बहाना करके रोहन से ज्यादा बात नहीं की । फोन काट दिया।
दूसरे दिन जब उनकी मुलाकात को चौबीस घंटे बीत गए थे, क्षमा बावली - सी हो गई थी।
उस समय क्षमा फोन में केवल ऋषभ का नाम देखना चाहती थी, मैसेज में या फोन कॉल पर सही।
' यह उसके आत्म अभिमान की अनुभूति तो नहीं कि मेरे विचार से उसे कुछ भी तकलीफ नहीं हुई वरना वह जरूर फोन करता है और जिस स्ट्रिक्टनेस से, कड़े सलीके से उसने मना किया था, समझाया था, कोई बंदा फिर क्यों फोन करेगा? क्या उसे अपना कोई आत्मसम्मान नहीं है? अब उसे यह बेचैनी हो गई थी । मन काबू में नहीं रहा। हाथों ने मस्तिष्क की बात नहीं सुनी वह मन की बातों में आ गया और उसके फोन से ऋषभ का नंबर डायल हुआ।
रिंग बजती रही, देर से ही सही पर फोन उठाया गया।
“जी सर, कहिए। घर पर हूं , पांच मिनट के बाद कॉल करता हूं।”
कॉल कट हो गया।
पांच मिनट बाद भी फोन नहीं आया। अब क्षमा धर्म संकट में थी की उसे क्या जवाब दिया जाए ? वजह बताने के लिए वह फिर कहाँ ही मिलेगा। पूछेगा अभी तो बता देते हैं कि बच्चे ने गलती से डायल किया था।
फिर फोन आया, “हेलो क्षमा, क्या हुआ? नींद नहीं आ रही? हम जैसे प्रेमी को तड़पाओगे तो ऐसे ही होगा। सुन रही हो ना? सुनो, क्षमा तुम्हारा नाम तो क्षमा है, पर जिद पकड़ के बैठी हो। छोड़ दो, तुमसे नहीं होगा। बड़ी-बड़ी बातें कर रही थी कि जिंदगी भर नहीं मिलेंगे, एक दिन भी ना रह सकी। अब तो अपनी बुद्धि की मत सुनो, दिल की आवाज सुनो।”
“सुनो ना, ऋषभ, एक्चुअली वह गलती से..“
“अब क्यों इतने नाटक नखरे करती हो, चलो छोड़ो। आराम से सो जाओ। कल ऑफिस को छुट्टी लगा दो। कल हम कहीं सुबह निकल जाएंगे,किसी रिजॉर्ट पर दिन बिताएंगे तब तुम्हें समझ में आएगा कि मैं कितना प्यार करता हूं तुमसे।”
“रहने दो ऋषभ. . आदत की बात थी और कुछ नहीं। इसलिए गलती हुई। गुड नाइट । बाय फॉरएवर।”
“ओके गुड नाइट!”
अब क्षमा को लगा कि वह सही थी, उसका निर्णय सही था! मन के झांसे में आकर भाव खोने की आवश्यकता नहीं थी। आदत जैसे लग जाती है वैसे छूट भी जाती है। लत छुटने में थोड़ा समय तो लगेगा। जब वह अपने पति से, रोहन से अलग हुई , बिना उसके कितने दिन से अकेली रह रही है, ऋषभ क्या है? कुछ भी तो नहीं। हां, दोस्त जैसा सुकून जरूर उसने दिया था। कल को बातों में आकर अगर उसने कोई गलत कदम उठाया। उन नजदीकियों के बाद वह शायद उससे दूर न रह पाए, कुढ़ती रहे और अगर ऋषभ के परिवार में कोई अनबन हुई, कल को उसकी पत्नी ने क्षमा को जिम्मेदार ठहराया या बददुवा दी तो?
अब वह अपने बल पर, अपने बेटे के साथ, सुकून से जीना चाहती थी। उसको फिर इन सब बातों में नहीं पडना था। मन को अच्छा लगने के लिए अपने बुद्धि को तकलीफ नहीं देना चाहती थी। जब उसका पति रोहन कहीं और उलझ गया था , तो तीनों दुखी होने के बदले, कोई दो लोग खुश रहे इस बात को सोचकर, बहुत हिम्मत से उसने अपना परिवार तोड़ा था। रोहन बेटे की जिम्मेदारी भी लेने को तैयार था, पर उसने अपने आत्मसम्मान के लिए उसको जाने नहीं दिया।
अब वह अपने बल पर, अपने बेटे के साथ, सुकून से जीना चाहती थी। उसको फिर इन सब बातों में नहीं पडना था। मन को अच्छा लगने के लिए अपने बुद्धि को तकलीफ नहीं देना चाहती थी। जब उसका पति रोहन कहीं और उलझ गया था , तो तीनों दुखी होने के बदले, कोई दो लोग खुश रहे इस बात को सोचकर, बहुत हिम्मत से उसने अपना परिवार तोड़ा था। रोहन बेटे की जिम्मेदारी भी लेने को तैयार था, पर उसने अपने आत्मसम्मान के लिए उसको जाने नहीं दिया।
क्षमा ने किसी भी समय ऋषभ को गलत नहीं ठहराया क्योंकि गलती तो उसकी अपनी भी थी। रोहन से बिछड़ने पर दोस्त के रिश्ते से ही सही ऋषभ जीवन में आया था पर उसके इस आशिकाना मिज़ाज से उसे बहुत डर लग रहा था की कहीं वह अपना घर तोड़ ना बैठे।
ऋषभ की पत्नी से उसकी नहीं बनती थी यह जितना भी सच हो पर अपना परिवार टूटने पर वह किसी और का सुकून छीनना नहीं चाहती थी!
ऋषभ की पत्नी से उसकी नहीं बनती थी यह जितना भी सच हो पर अपना परिवार टूटने पर वह किसी और का सुकून छीनना नहीं चाहती थी!
अपनी मर्यादाएं उसने स्वयं बना ली थीं। आज उसने अपने मनकों समझा दिया कि भले मुक्कमल जहां न मिले, वह अपने नजरों में गिरना नहीं चाहती थी।
©® स्वाती बालूरकर, सखी
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