अपने से दूर बसे संबंधियों, मित्रों, परिवार जनों तथा विभिन्न अधिकारी यो को पत्र लिखने की आवश्यकता पड़ती है| पत्र के द्वारा हम अपनी बात अत्यंत सुगमता से उन तक पहुंचा सकते है|
यद्यपी आजकल दूरभाष, तार, ई-मेल, इंटरनेट, टेलीफोन, मोबाईल फोन आधी द्वारा भी यह कार्य किया जाता है परंतु फिर भी पत्र का महत्व कम नही हुआ है क्योंकि :
•पत्रों द्वारा विस्तार से अपनी बात व्यक्त की जा सकती है|
•पत्रों द्वारा विचारों को प्रेषित करना अन्य साधनों की अपेक्षा सस्ता है|
•अधिकारीयों तक अपनी बात पहुंचाने, शिकायत करने, आवेदन या प्रार्थना आदी के लिए केवल पत्र का ही सहारा लिया जा सकता है, अन्य साधनो का नाही|
•पत्रों को दस्तावेजी़ साक्ष्य के रूप मे रखा जा सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उनका पुनरावलोकन एवं प्रयोग किया जा सकता है|
पत्र लिखते समय ध्यान मे रखने योग्य पाच मुख्य बाते
१.पत्र की भाषा सरल होनी चाहिये|
२.पत्र मे व्यक्त की गई बात संक्षेप मे होनी चाहिये|
३.लिखने वाले का नाम, पता, पत्र लिखने का स्थान, दिनांक आदी अंकित हो|
४.जिसे पत्र लिखा गया हो उसकी आयु, पद, संबंध आदी के अनुरूप संबोधनवाची शब्द तथा अभिवादन संबंधी शब्द का सही प्रयोग किया गया हो|
५.पत्र के अंत मे लिखने वाले और पत्र पाने वाले के अनुरूप शब्दावली का प्रयोग किया गया हो|
पत्रों के प्रकार
पत्रों को दो वर्ग मे विभक्त किया जा सकता है
क. अनौपचारिक पत्र (informal letters)
ख. औपचारिक पत्र (formal letters)
क. अनौपचारिक पत्र
ऐसे पत्र जो अपने सगे-संबंधियो, परिवारजनों या परिचितों को लिखे जाते है, उन्हे अनोपचारिक पत्र कहा जाता है| जैसे माता-पिता, भाई-बहन, मित्रों आदी को लिखे गये पत्र|
ख. औपचारिक पत्र
ऐसे पत्र जो ऐसे व्यक्तियों या अधिकारी को लिखे जाते है, जिनसे लिखने वाले का कोई व्यक्तिगत संबंध नाही होता, औपचारिक पत्र कहलाते हैं| जैसे विद्यालय के प्रधानाचार्य को, किसी अधिकारी को, संपादक को, पुस्तक विक्रेता आदी को लिखे गये पत्र|
दोनो प्रकार के पत्र मे तीन मुख्य अंतर
अनौपचारिक और औपचारीक पत्र के लिखने के ढंग मे अंतर होता है|
१.अनौपचारिक पत्रों में आत्मीयता या अपनेपन की भावना निहित रहती है पर औपचारिक पत्र में नहीं|
२.अनौपचारिक पत्रों मे घरेलू समाचार तथा व्यक्तिगत बातों का उल्लेख किया जाता है पर औपचारिक पत्र मे नही| अनौपचारिक पत्रों मे संबंद्ध विषय के अतिरिक्त और कुछ नही लिखा जाता|
३.अनौपचारिक पत्रों के लिखने का ढंग निश्चित नही होता जब की औपचारिक पत्र के लिखने की निश्चित शैली या ढंग होता है| औपचारिक पत्र में सीधे विषय पर बातचीत की जाती है|
पत्र के अंग
पत्र के मुख्य रूप से पाच अंग माने गये है-
पत्र लेखक का पता और दिनांक
पत्र के उपरी सिरे पर प्राय: दाई और पता लिखा जाता है| आज कल इसे बाईं ओर लिखने का प्रचलन हो गया है| (हिंदी मे दोनों ही रूप मान्य आहे)
पत्र पाने वाले के लिए उपयुक्त संबोधन तथा अभिवादन
पत्र के बाईं और लिखे जाते है| पहले संबोधन शब्द लिखा जाता है तथा फिर अभिवादन शब्द| (औपचारिक पत्र मे अभिवादन शब्द का प्रयोग नही किया जाता)
पत्र का मुख्य विषय
पत्र द्वारा प्रेषित की जाने वाली सूचना, समाचार, निवेदन, शिकायत या कुछ और बात|
पत्र की समाप्ती पर प्रयुक्त शब्दावली
पत्र की समाप्ती पर लिखने वाले और पत्र प्राप्त करने वालो के संबंधो के अनुसार कुछ शब्दावली का प्रयोग किया जाता है| जैसे-तुम्हारा मित्र, भवदीय, प्रार्थी, आपका आज्ञाकारी, तुम्हारा शुभचिंतक आदी|
पत्र पाने वाले का पता
अनौपचारिक तथा औपचारिक पत्र मे यह सबसे अंत मे लिखा जाता है| औपचारिक पत्र मे हस्ताक्षर तथा नाम के नीचे भेजने वाले का पता तथा बाईं और पाने वाले का पता लिखा जाता है, पर आज कल पत्रों के नये प्रारूप मे यह पत्र के प्रारंभ मे ही लिख दिया जाता है|
उदाहरण.
भेजने वाले का पता …………………….
स्थान………………….
दिनांक…………………
प्रिय मित्र………………
नमस्कार
कई दिनों से तुम्हारा पत्र नही आया……………………..
………………(मुख्य विषय).................................................................,.......
………………(मुख्य विषय).................................................................,.......
तुम्हारा परम मित्र
…………………..
…………………..
(नाम)
पत्र पाने वाले के प्रति संबोधन अभिवादन तथा समाप्ती
क. अपने से बडों के लिए
१. संबोधन-पूजनीय, आदरणीय, पूज्य, मान्यवर, श्रीमान आदी|
१. संबोधन-पूजनीय, आदरणीय, पूज्य, मान्यवर, श्रीमान आदी|
२. अभिवादन-सादर प्रणाम, चरण स्पर्श, सादर चरण स्पर्श आदी|
३. समाप्ती-आपका आज्ञाकारी, आपकी अज्ञाकारणी, आपका अनुज, आपकी अनुजा, कृपाकांक्षी, कृपाकांक्षणी|
ख. अपने से छोटे के लिये
१. संबोधन-प्रिय (नाम), चिरंजीव (नाम), आयुष्मती (नाम) आदी|
२. अभिवादन-शुभाशीर्वाद, शुभाशीष, प्रसन्न रहो, सुखी रहो आदी|
३. समाप्ती-तुम्हारा शुभचिंतक, तुम्हारी शुभचिंतिका, तुम्हारा शुभाकांक्षी, तुम्हारी शुभकांक्षणी आदी|
बराबर वालों के लिए
१. संबोधन-प्रिय (नाम), प्रिय मित्र (नाम), प्रिय बंधू आदी|
२. अभिवादन-नमस्कार, सप्रेम नमस्कार, मधुर स्मृती, नमस्ते आदी|
३. समाप्ती-तुम्हारा परम मित्र, तुम्हारा अभिन्न मित्र, तुम्हारी सखी आदी|
प्रार्थना पत्रों में
१. संबोधन-श्रीमान प्रधानाचार्य, श्रीमान (अधिकारी का पद) आदी|
२. अभिवादन-मान्यवर, मान्यवर महोदय, महोदय आदी|
३. समाप्ती-विनीत, प्रार्थी, भवदीय, आपका आज्ञाकारी शिष्य, आपकी अज्ञाकारिणी शिष्या, भवदिया, प्रार्थिणी आदी|
व्यावसायिक पत्रों मे
१. संबोधन-व्यवस्थापक महोदय, प्रबंधक महोदय (प्रकाशक या कंपनी का नाम) आदी|
२. अभिवादन-महोदय, मान्यवर आदी|
३. समाप्ती-भवदीय भवदीया आदी|
किसी अधिकारी या समाचार पत्र के संपादक को लिखे गये पत्रों मे
१. संबोधन-श्रीमान संपादक महोदय, श्रीमान (अधिकारी का पद)
२. अभिवादन-महोदय, मान्यवर, मान्यवर महोदय आदी|
३. समाप्ती-भवदीय/ भवदिया आदी|
©® राखी भावसार भांडेकर.