आज एक सफर मुकम्मल होने को है
जिंदगीको हमेशासेही
सफर माना था,
हमसफर मिलेंगे यहा,
अंदाजा इसका भी था,
फिर क्यु,अंदर ही अंदर कुच आज टुट रहा है,
आज एक सफर मुकम्मल हो रहा है...
मुकम्मल होते सफरकी
कुच यादे ताजा होगयी.
जो मांगीथी दुवा मैने तेरे जैसे दोस्तकी,
वो उसदीन कुबुल हुयी.
रेलकी पटरीया उस दीन भी खडखडायी थी,
दोस्ती अपनी जिस दीन
इसी सफर का पैगाम लायी थी...
खुबसुरत सफर ये,
यादे बना रहा था..
मै फिरसे जीउठी थी और यहा...,
एक सफर मुकम्मल होरहा था.
किसने सोचा था के
दोस्तीकी राहे इतनी जल्दी जुदा होजायेंगी,
जीउठने वाली दोस्ती,
एक दीन युही पराई होजायेगी...
हमारा मकाम कितना जल्दी आगया ऎ मेरे दोस्त,
युही नही वोही रेल की पटरीया,
कल फिरसे खडखडायी थी...
लगाथा जैसे कोई, और पास आरहा है.
क्या पता था, कोई अपना सफर मुकम्मल कर रहा है...
-गायत्री-