बिज्जू काका

The Story Based On The Street Vendor

यू तो मुझे कही घुमने जाना रास ना आता.. लेकिन अपनी नानी के घर जाना मुझे बेहद अच्छा लगता था.. मसूरी से लगभग 300 किमी कि दूरी तय करके बरेली घुमने जाना मेरे दोस्तो को जरा अजीब लगता था..

    नानी का प्यार, मामाजी से दोस्ती, मामीजी का ढेरसारा प्यार और छोटीसी, प्यारीसी मेरी ममेरी बहन कि शैतानियाँ मुझे उन गलियोंमें खीच ले जाती.. आज भी मै ननिहाल गया तो मामीजी और मेरी छुटकी तो फुले नही समाये... एक और वजह थी मेरी, ऊन बरेली कि गलियो में घुमने कि..

  चाट वाले बिज्जू काका.. करीब साठ बरस के, हाथ में लाठी और भुरे रंग का ऐनक पहनके बिज्जू काका एक हिरो से कम नहीं थे.. हालाकी चाट बनाने में तो उनका हाथ कोई पकड नहीं सकता था.. बरेली में रहकर भी उनको वो वाली बोली ना आती.. जो बरेली के लोग बोलते.. उनको तो नाना पाटेकर पसंद थे.. क्रांतिवीर वाले..


  बस एक बहाना मिला मुझे घरसें बाहर घुमने जाने के लिये.. निकल पडा बिज्जू काका से मिलने.. पीछे पीछे हमारी छुटकी भी हमारे साथ चल पडी.. हम पहुचे काका के ठेले पर.. "प्रणाम काका कैसे हो..? सब कुशल मंगल..?" मेरी बात सूनके वो हसकर बोलें, "अरे पुतानी के नाती ना तुम..? हमारा क्या है? तुम्हारे लिये चाट बनाते है तिखी.. छुटकी के लिये मिठी मिठी.. यहा है हम कुशल.. और तुम्हारी काकी ने आज अच्छा खाना बनाया तो मंगल ही मंगल.." और हम तीनो जोर से हस पडे.. चाट खा ही रहे थे तब एक सब्जीवाली उसकी प्यारी बेटी के साथ उधर से गुजर रही थी.. हमारी छुटकी से बहुत छोटीसी... वो एकाएक चाट के लिये जिद करने लगी.. उसकी माँ मना कर रही थी.. मैने छुटकी कि प्लेट उसे थमा दी.. उसकी माँ बडी खुद्दार थी.. और वो बच्ची भी शायद.. क्यूँकी दोनो ने चाट लेने से मना किया..


   मैने कहा, "माँसिजी..! ये भी मेरी छुटकी कि तरह है.. उसके भैया खिला रहे है उसे.. " उसने चाट ली और अपने रस्ते चल पडी.. मै ठेले तक आता तब तक छुटकी को दुसरी प्लेट काका दे चुके थे..


चाट खाने के बाद मै पैसे दे रहा था तब काका बोल पडे.. "अरे बच्चे आज मुझे पैसे मत दो.. उस बच्ची के नहीं... वो दोनो रोज यहा से गुजरती है.. बच्ची रोज जिद्द करती.. और उसकी माँ उसे मार धपटकर ले जाती.. मै चाट देने लगा तो उसने मना किया था.. शायद बिना औलाद वाला हूं ना.. कोई अपने बच्चे को मुझे और 'तेरी काकी को प्यार करने नहीं देता.. आज उस बच्ची ने थप्पड कि जगह पापड खाया.. मेरे दिल कि तमन्ना पुरी हो गयी.. अब मुझे कुछ नहीं चाहिये.." और अपने आसू पोछ लिये.. फिर मै और छुटकी घर वापस आ गये..


   दुसरे दिन सुबह एक आदमी घर आया और मामाजी से बोला.. कि बिज्जू काका चल बसे.. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.. मै मामाजी को साथ लिये उनके घर पहुचा.. काकी रोए जा रही थी.. काका के शरीर को देखा मैने.. तो एक अलग चीज उनके चेहरे पर देखी मैने... वो थी सुकून.. शायद उस बच्ची को चाट खिलाने का सुकून था.. कलतक जो जिंदा होते हुए भी थोडेसे उदास रहते थे उन बिज्जू काका के चेहरे पर मरने के बाद मुस्कान थी..

©® ऋचा नीलिमा

यू तो मुझे कही घुमने जाना रास ना आता.. लेकिन अपनी नानी के घर जाना मुझे बेहद अच्छा लगता था.. मसूरी से लगभग 300 किमी कि दूरी तय करके बरेली घुमने जाना मेरे दोस्तो को जरा अजीब लगता था..
नानी का प्यार, मामाजी से दोस्ती, मामीजी का ढेरसारा प्यार और छोटीसी, प्यारीसी मेरी ममेरी बहन कि शैतानियाँ मुझे उन गलियोंमें खीच ले जाती.. आज भी मै ननिहाल गया तो मामीजी और मेरी छुटकी तो फुले नही समाये... एक और वजह थी मेरी, ऊन बरेली कि गलियो में घुमने कि..
चाट वाले बिज्जू काका.. करीब साठ बरस के, हाथ में लाठी और भुरे रंग का ऐनक पहनके बिज्जू काका एक हिरो से कम नहीं थे.. हालाकी चाट बनाने में तो उनका हाथ कोई पकड नहीं सकता था.. बरेली में रहकर भी उनको वो वाली बोली ना आती.. जो बरेली के लोग बोलते.. उनको तो नाना पाटेकर पसंद थे.. क्रांतिवीर वाले..

बस एक बहाना मिला मुझे घरसें बाहर घुमने जाने के लिये.. निकल पडा बिज्जू काका से मिलने.. पीछे पीछे हमारी छुटकी भी हमारे साथ चल पडी.. हम पहुचे काका के ठेले पर.. "प्रणाम काका कैसे हो..? सब कुशल मंगल..?" मेरी बात सूनके वो हसकर बोलें, "अरे पुतानी के नाती ना तुम..? हमारा क्या है? तुम्हारे लिये चाट बनाते है तिखी.. छुटकी के लिये मिठी मिठी.. यहा है हम कुशल.. और तुम्हारी काकी ने आज अच्छा खाना बनाया तो मंगल ही मंगल.." और हम तीनो जोर से हस पडे.. चाट खा ही रहे थे तब एक सब्जीवाली उसकी प्यारी बेटी के साथ उधर से गुजर रही थी.. हमारी छुटकी से बहुत छोटीसी... वो एकाएक चाट के लिये जिद करने लगी.. उसकी माँ मना कर रही थी.. मैने छुटकी कि प्लेट उसे थमा दी.. उसकी माँ बडी खुद्दार थी.. और वो बच्ची भी शायद.. क्यूँकी दोनो ने चाट लेने से मना किया..

मैने कहा, "माँसिजी..! ये भी मेरी छुटकी कि तरह है.. उसके भैया खिला रहे है उसे.. " उसने चाट ली और अपने रस्ते चल पडी.. मै ठेले तक आता तब तक छुटकी को दुसरी प्लेट काका दे चुके थे..

चाट खाने के बाद मै पैसे दे रहा था तब काका बोल पडे.. "अरे बच्चे आज मुझे पैसे मत दो.. उस बच्ची के नहीं... वो दोनो रोज यहा से गुजरती है.. बच्ची रोज जिद्द करती.. और उसकी माँ उसे मार धपटकर ले जाती.. मै चाट देने लगा तो उसने मना किया था.. शायद बिना औलाद वाला हूं ना.. कोई अपने बच्चे को मुझे और \"तेरी काकी को प्यार करने नहीं देता.. आज उस बच्ची ने थप्पड कि जगह पापड खाया.. मेरे दिल कि तमन्ना पुरी हो गयी.. अब मुझे कुछ नहीं चाहिये.." और अपने आसू पोछ लिये.. फिर मै और छुटकी घर वापस आ गये..

दुसरे दिन सुबह एक आदमी घर आया और मामाजी से बोला.. कि बिज्जू काका चल बसे.. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.. मै मामाजी को साथ लिये उनके घर पहुचा.. काकी रोए जा रही थी.. काका के शरीर को देखा मैने.. तो एक अलग चीज उनके चेहरे पर देखी मैने... वो थी सुकून.. शायद उस बच्ची को चाट खिलाने का सुकून था.. कलतक जो जिंदा होते हुए भी थोडेसे उदास रहते थे उन बिज्जू काका के चेहरे पर मरने के बाद मुस्कान थी..
©® ऋचा नीलिमा