अकेला सफर...

This poem written by me.

पता नहीं किस राह पर चलने लगे हम...

आपसे इतनी मोहोबत्त क्यू करने लगे हम...
अकेले मे खुद से ही बातें करने लगे हम...
न जा नें क्यू आपको इतना याद करने लगे हम...

पता नहीं किस राह पर चलने लगे हम...


रुठ कर तूमसे तुम्ही को याद करने लगे हम...
याद करके तुम्हे हलकासा मुस्कुराने लगे हम...
औंर न जाणे क्यू पलभर मे रोने भी लगे हम...

पता नहीं किस राह पर चलने लगे हम...
अकेलेही इस सफर को जिने लगे हम...
अपने आंसू खुदसे ही छुपाने लगे हम...
सब कुछ भुलाकर जिंदगी जिने लगे हम...

पता नहीं किस राह पर चलने लगे हम...


मंजिल तो आपही हो पर न जाने क्यू राह भटकणे लगे हम...
अंजान से रास्ते पर गुमसून से खडे हैं हम...
किसी की गैरत के नामापर झुटी हसी मुस्कुराने लगे हम...

झुटी हसी मुस्कुराने लगे हम...
 

                                                                                        Ashu.