ललिता एक ग्रहणी, जिसकी शादी को चार साल बीत चुके थे। पर उसको और उसके पति रवि को औलाद का सुख नही मिल पा रहा था। दोनों ने ना जाने कितने डाक्टर से ईलाज ले लिया था। पर सब बेकार गया,उन्हे कोई सफलता नहीं मिली।
पर जब हार कर उन दोनों ने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया। तो एक दिन अचानक खबर मिली की ललिता माँ बनने वाली है। तो मानो दुनिया की हर खुशी, उन दोनों को मिल गई। रवि अब ललिता की बहुत ज्यादा care करने लगा।
आफिस से अक्सर जल्दी आ जाता। घर के कामों में ललिता की मदद करता धीरे-धीरे समय बीता और ललिता की delivery हो गई । ललिता ने एक बेटे को जन्म दिया। बेटा पैदा हुआ है ,सुनकर रवि खुशी से फूला नहीं समा रहा था। पर उसकी खुशी तब उदासी में बदल गई, जब डॉक्टर ने रवि के हाथों में उसका बेटा दिया। उस उदासी का कारण, उस बच्चे का काला रंग था। रवि ने उसको तुरंत ललिता के पास लेटा दिया और ललिता को खरी-खोटी सुनाने शुरू कर दी, कि तुमने बेटा भी अपने जैसे रंग का पैदा कर दिया। मैंने तो सोचा था लोगों से गर्व से कहूंगा यह मेरा बेटा है, पर इसे कैसे लोगों के सामने लेकर जाऊंगा?
लोग, समाज बस इन्हीं के बारे में सोचता रहता है। लोग क्या कहेंगे? लोग तो तब भी बहुत कुछ कहते हैं, जब औलाद नहीं होती। लोग तो तब भी बहुत कुछ कहते हैं जब बेटी पैदा हो जाती है। और लोग अब भी बहुत कुछ कहेंगे जो पैदा तो बेटा हुआ पर उसका रंग काला है। क्या समाज में काले रंग का पैदा होना इतना गलत है?
जरूरत है सोचने की।